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१, ९-१, २३.] चूलियाए पगडिसमुक्वित्तणे माहणीय-उत्तरपयडीओ [४१ क्खाणावरणीयकोह-माण-माया-लोह, कोहसंजलणं,माणसंजलणं,मायासंजलणं लोहसंजलणं चेदि ॥ २३ ॥
___ दुःखशस्यं कर्मक्षेत्रं कृति फलवत्कुर्वन्तीति कषायाः क्रोध-मान-माया-लोभाः। क्रोधो रोषः संरम्भ इत्यनर्थान्तरम् । मानो गर्वः स्तब्धत्वमित्येकोऽर्थः। माया निकृतिवंचना अनृजुत्वमिति पर्यायशब्दाः । लोभो गृद्धिरित्येकोऽर्थः । अनन्तान् भवाननुबद्धं शीलं येषां ते अनन्तानुबन्धिनः। अनन्तानुबन्धिनश्च ते क्रोध-मान-माया-लोभाश्च अनन्तानुबन्धिक्रोध-मान-माया-लोभाः । जेहि कोह माण-माया-लोहेहि अविणट्ठसरूवेहि सह जीवो अणंते भवे हिंडदि तेसिं कोह-माण-माया-लोहाणं अणंताणुबंधी सण्णा त्ति उत्तं होदि । एदेसिमुदयकालो अंतोमुहुत्तमेत्तो चेय, द्विदी चालीससागरोवमकोडाकोडिमेत्ता चेय । तदो एदेसिमणंतभवाणुबंधित्तं ण जुज्जदि त्ति ? ण एस दोसो, एदेहि जीवम्हि जणिदसंसकारस्स अणंतेसु भवेसु अवट्ठाणब्भुवगमादो । अधवा अणंतो अणुबंधो वरणीय क्रोध, मान, माया, लोभ, क्रोधसंज्वलन, मानसंज्वलन, मायासंज्वलन और लोभसंज्वलन ॥२३॥
___जो दुखरूप धान्यको उत्पन्न करनेवाले कर्मरूपी खेतको कर्षण करते हैं, अर्थात् फलवाले करते हैं, वे क्रोध, मान, माया और लोभ कषाय हैं। क्रोध, रोष और संरम्भ, इनके अर्थमें कोई अन्तर नहीं है। मान, गर्व और स्तब्धत्व, ये एकार्थ-वाचक नाम हैं। माया, निकृति, वंचना और अनुजुता, ये पर्यायवाची शब्द हैं। लोभ और गृद्धि, ये दोनों एकार्थक नाम हैं । अनन्त भवोंको बांधना ही जिनका स्वभाव है वे अनन्तानुबन्धी कहलाते हैं। अनन्तानुबन्धी जो क्रोध, मान, माया, लोभ होते हैं वे अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया और लोभ कहलाते हैं। जिन अविनष्ट स्वरूपवाले, अर्थात् अनादिपरम्परागत क्रोध, मान, माया और लोभके साथ जीव अनन्त भवमें परिभ्रमण करता है, उन क्रोध, मान, माया और लोभ कषायोंकी 'अनन्तानुबन्धी' संज्ञा है, यह अर्थ कहा गया है।
शंका-उन अनन्तानुबन्धी क्रोधादि कषायोंका उदयकाल अन्तर्मुहूर्तमात्र ही है, और स्थिति चालीस कोड़ाकोड़ी सागरोपमप्रमाण है। अतएव इन कषायोंके अनन्तभवानुबन्धिता घटित नहीं होती है ? ।
समाधान-यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, इन कषायोंके द्वारा जीवमें उत्पन्न हुए संस्कारका अनन्त भवोंमें अवस्थान माना गया है । अथवा, जिन क्रोध, मान, माया,
१ त. सू. ८, ९, २ अ-आप्रत्योः ‘ भवाननुबंधं ' कप्रतौ ' भवाननुबंधुं ' इति पाठः ।
३ अनन्तसंसारकारणत्वान्मिथ्यादर्शनमनन्तं तदनुबन्धिनोऽनन्तानुबन्धिनः क्रोधमानमायालोमाः। स. सि.; त. रा. वा. ८,९.
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