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१, ६, ७. ]
अंतराणुगमे सासण-सम्मामिच्छादिट्ठि-अंतरपरूवणं
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गदा । पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तकालं सासणगुणट्ठाणमंतरिदं । तदो उक्कस्तरस्स अणंतरसमए सत्त जणा बहुआ वा उवसमसम्मादिट्ठिणो आसाणं गदा । लद्धमंतरं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ।
सम्मामिच्छादिट्ठिस्स उच्चदे - णाणाजीवगदसम्मामिच्छत्तद्धाए उक्कस्संतरजोग्गाए अदिक्कताए सच्चे सम्मामिच्छादिट्टिणो सम्मत्तं मिच्छत्तं वा पडिवण्णा । अंतरिदं सम्मामिच्छत्तगुणट्ठाणं । पुणो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्त उक्कस्संतरकालस्स अणंतरसमए अट्ठावीससंतकम्मियमिच्छादिट्टिणो वेदगसम्मादिट्टिणो उवसमसम्मादिङ्किणो वा सम्मामिच्छत्तं पडिवण्णा । लद्धमंतरं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, अंतोमुहुत्तं ॥ ७ ॥
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जहा उसो तहा णिसो ' त्ति णायादो सासणसम्मादिट्ठिस्स पढमं उच्चदेएक्को सासणसम्मादिट्ठी उवसमसम्मत्तपच्छायदो केत्तियं पि कालमासाणगुणेणच्छिय मिच्छत्तं गदो अंतरिदो । पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तकालेण भूओ उवसमसम्म मात्र कालतकके लिए सासादन गुणस्थान अन्तरको प्राप्त हो गया । पुनः इस पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण उत्कृष्ट अन्तरकालके अनन्तर समयमें ही सात आठ जन, अथवा बहुतसे उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सासादन गुणस्थानको प्राप्त हुए । इस प्रकारसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण सासादनका उत्कृष्ट अन्तरकाल प्राप्त हो गया ।
अब सम्यग्मिथ्यादृष्टिका उत्कृष्ट अन्तरकाल कहते हैं- उत्कृष्ट अन्तरके योग्य, नाना जीवगत सम्यग्मिथ्यात्वकालके व्यतिक्रान्त होने पर, सभी सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव सम्यक्त्वको, अथवा मिथ्यात्वको प्राप्त हुए । इस प्रकारसे सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान अन्तरको प्राप्त हुआ । पुनः पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र उत्कृष्ट अन्तरकालके अनन्तर समय में ही मोह कर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाले मिथ्यादृष्टि, अथवा वेदकसम्यग्दृष्टि, अथवा उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त हुए। इस प्रकार से सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानका पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण उत्कृष्ट अन्तर प्राप्त हो गया । सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर क्रमशः पल्योपमके असंख्यातवें भाग और अन्तर्मुहूर्त है ॥ ७ ॥
जिस प्रकार से उद्देश होता है, उसी प्रकारसे निर्देश होता है, इसी न्यायसे सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानका अन्तर पहले कहते हैं- उपशम सम्यक्त्वसे पीछे लौटा हुआ कोई एक सासादनसम्यग्दृष्टि जीव कितने ही काल तक सासादन गुणस्थानमें रहा और फिर मिथ्यात्वको प्राप्त हो अन्तरको प्राप्त हुआ । पुनः पल्योपमके असंख्यातवें १ एक्जीवं प्रति जघन्येन पल्योपमासंख्येयभागः । x x x सम्यग्मिथ्यादृष्टेः x x एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । स. सि. १,८. २ प्रतिषु ' आसाणं गुणेण ' हति पाठः ।
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