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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ६, ७.
पडिवज्जिय छावलियावसेसाए उवसमसम्मत्तद्धाए आसाणं गदो । लद्धमंतरं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । अंत मुहुत्तकालेण आसाणं किण्ण णीदो ? ण उवसमसम्मत्तेण विणा आसाणगुणग्गणाभावा । उवसमसम्मत्तं पि अंतामुहुत्तेण किरण पडिवज्जदे ? ण, उवसमसम्मादिट्ठी मिच्छत्तं गंतून सम्मत्त - सम्मामिच्छत्ताणि उच्बेल्लमाणो तेसिमंतोकोडाकोडीमेत्तट्ठिदिं घादिय सागरोवमादो सागरोवमपुधत्तादो वा जाव हेट्ठा ण करेदि ताव उवसमसम्मत्तगहणसंभवाभावा । ताणं द्विदीओ अंतोमुहुत्तेण घादिय सागरोवमादो सागरोवमपुत्तादो वा हेट्ठा किण्ण करेदि ? ण, पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तायामेण अंतोमुहुत्तुक्कीरणकालेहि उब्वेल्लणखंडएहि घादिज्जमाणाए सम्मत-सम्मामिच्छत्तट्ठिदीए पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तकालेण विणा सागरोवमस्स वा सागरोवमपुधत्तस्स वा
पदाववत्तदो । सासणपच्छायदमिच्छाइट्ठि संजमं गेण्हाविय दंसणतिय मुवसामिय भागमात्र कालसे उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त होकर, उपशमसम्यक्त्वके कालमें छह आवली काल अवशेष रहने पर सासादन गुणस्थानको प्राप्त हो गया । इस प्रकारसे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण अन्तरकाल उपलब्ध हो गया ।
शंका- पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण कालमें अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहने पर सासादन गुणस्थानको क्यों नहीं प्राप्त कराया ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, उपशमसम्यक्त्वके विना सासादन गुणस्थानके ग्रहण करनेका अभाव है ।
शंका- वही जीव उपशमसम्यक्त्वको भी अन्तर्मुहूर्तकालके पश्चात् ही क्यों नहीं प्राप्त होता है ?
समाधान नहीं, क्योंकि, उपशमसम्यग्दृष्टि जीव मिथ्यात्वको प्राप्त होकर, सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्याप्रकृतिकी उद्वेलना करता हुआ, उनकी अन्तःकोड़ाकोडीप्रमाण स्थितिको घात करके सागरोपमसे, अथवा सागरोपम पृथक्त्वसे जबतक नीचे नहीं करता है, तब तक उपशमसम्यक्त्वका ग्रहण करना ही संभव नहीं है ।
शंका -- सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृतिकी स्थितिओंको अन्तर्मुहुर्त - कालमें घात करके सागरोपमसे, अथवा सागरोपमपृथक्त्व काल से नीचे क्यों नहीं करता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र आयामके द्वारा अन्तर्मुहूर्त उत्कीरणकालवाले उद्वेलनाकांडकोंसे घात कीजानेवाली सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृतिकी स्थितिका, पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र कालके विना सागरोपमके, अथवा सागरोपमपृथक्त्वके नीचे पतन नहीं हो सकता है ।
शंका- सासादन गुणस्थानसे पीछे लौटे हुए मिथ्यादृष्टि जीवको संयम ग्रहण कराकर और दर्शनमोहनीयकी तीन प्रकृतियोंका उपशमन कराकर, पुनः चारित्रमोहका
१ प्रतिषु ' पदेणा-' इति पाठः ।
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