SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, ६, ८.] अंतराणुगमे सासण-सम्मामिच्छादिट्ठि-अंतरपरूवणं [११ पुणो चरित्तमोहमुवसामेदूण हेट्ठा ओयरिय आसाणं गदस्स अंतोमुहुत्तंतरं किण्ण परूविदं ? ण, उवसमसेढीदो ओदिण्णाणं सासणगमणाभावादो । तं पि कुदो णव्यदे? एदम्हादो चेव भूदवलीवयणादो। सम्मामिच्छादिद्विस्स उच्चदे- एक्को सम्मामिच्छादिट्ठी परिणामपच्चएण मिच्छत्तं सम्मत्तं वा पडिवण्णो अंतरिदो । अंतोमुहुत्तेण भूओ सम्मामिच्छत्तं गदो। लद्धमंतरमंतोमुहुत्तं । उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्टू देसूणं ॥८॥ ताव सासणस्सुदाहरणं वुच्चदे- एक्केण अणादियमिच्छादिट्ठिणा तिण्णि करणाणि कादृण उवसमसम्मत्तं पडिवण्णपढमसमए अणंतो संसारो छिण्णो अद्धपोग्गलपरियट्टमेत्तो कदो । पुणो अंतोमुहुरं सम्मत्तेणच्छिय आसाणं गदो (१)। मिच्छत्तं पडिवज्जिय अंतरिदो अद्धपोग्गलपरियट्ट मिच्छत्तेण परिभमिय अंतोमुहुत्तावसेसे संसारे उवसमसम्मत्तं पडिवण्णो एगसमयावसेसाए उवसमसम्मत्तद्धाए आसाणं गदो । लद्धमंतरं । भूओ मिच्छाउपशम करा और नीचे उतारकर, सासादन गुणस्थानको प्राप्त हुए जीवके अन्तर्मुहूर्तप्रमाण अन्तर क्यों नहीं बताया ? समाधान-नहीं, क्योंकि, उपशमश्रेणीसे उतरनेवाले जीवोंके सासादन गुणस्थानमें गमन करनेका अभाव है। शंका-यह कैसे जाना? समाधानभूतवली आचार्यके इसी वचनसे जाना। : अब सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर कहते हैंएक सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव परिणामोंके निमित्तसे मिथ्यात्वको, अथवा सम्यक्त्वको प्राप्त हो अन्तरको प्राप्त हुआ और अन्तर्मुहूर्त कालके पश्चात् ही पुनः सम्यग्मथ्यात्वको प्राप्त हुआ । इस प्रकारसे अन्तर्मुहूर्तप्रमाण अन्तरकाल प्राप्त हो गया। उक्त दोनों गुणस्थानोंका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है ।।८॥ उनमेंसे पहले सासादन गुणस्थानका उदाहरण कहते हैं- एक अनादि मिथ्यादृष्टि जीवने अधःप्रवृत्तादि तीनों करण करके उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त होनेके प्रथम समयमें अनन्त संसारको छिन्न कर अर्धपुद्गलपरिवर्तनमात्र किया। पुनः अन्तर्मुहूर्तकाल सम्यक्त्वके साथ रहकर वह सासादनसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ (१)। पुनः मिथ्यात्वको प्राप्त होकर अन्तरको प्राप्त हुआ और अर्धपुद्गलपरिवर्तनकाल मिथ्यात्वके साथ परिभ्रमणकर संसारके अन्तर्मुहूर्त अवशेष रह जाने पर उमशमसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। पुनः उपशमसम्यक्त्वके कालमें एक समय शेष रह जाने पर सासादन गुणस्थानको प्राप्त हुआ। इस प्रकारसे सूत्रोक्त अन्तरकाल प्राप्त हो गया । पुनः मिथ्यादृष्टि हुआ (२)। पुनः वेदक १ उत्कर्षेणार्द्धपुद्गलपरिवतों देशोनः । स. सि. १, ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy