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१, ६, ५.] अंतराणुगमे सासणसम्मामिच्छादिट्टि-अंतरपरूवणं
[७ देवेसु मणुसाउगेणूणएक्कत्तीससागरोवमाउट्ठिदिएमु उववण्णो । अत्तोमुहुजूणछावट्टिसागरोवमचरिमसमए परिणामपच्चएण सम्मामिच्छत्तं गदो । तत्थ अंतोमुहुत्तमच्छिय पुणो सम्मत्तं पडिवज्जिय विस्समिय चुदो मणुसो जादो । तत्थ संजमं संजमासंजमं वा अणुपालिय मणुस्साउएणूणवीससागरोवमाउट्टिदिएमुवज्जिय पुणो जहाकमेण मणुसाउवेणूणवावीस-चउवीससागरोवमट्ठिदिएमु देवेमुववज्जिय अंतोमुहुतूणवेछावहिसागरोवमचरिमसमए मिच्छत्तं गदो । लद्धमंतरं अंतोमुहुत्तूणवेछावढिसागरोवमाणि । एसो उप्पत्तिकमो अउप्पण्णउप्पायणटुं उत्तो । परमत्थदो पुण जेण केण वि पयारेण छावट्ठी पूरेदव्या ।
सासाणसम्मादिट्ठि-सम्मामिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥५॥
___तं जहा, सासणसम्मादिहिस्स ताव उच्चदे- दो जीवमादि काऊण एगुत्तरकमेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तवियप्पेण उवसमसम्मादिट्ठिणो उवसमसम्मत्तद्धाए एगसमयमादि काऊण जाव छावलियावसेसाए आसाणं गदा । तेत्तियं पि कालं सासणप्रैवेयकमें मनुष्य आयुसे कम इकतीस सागरोपम आयुकी स्थितिवाले अहमिन्द्र देवोंमें उत्पन्न हुआ। वहां पर अन्तर्मुहूर्त कम छयासठ सागरोपम कालके चरम समयमें परिणामोंके निमित्तसे सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। उस सम्यग्मिथ्यात्वमें अन्तर्मुहूर्त काल रहकर पुनः सम्यक्त्वको प्राप्त होकर, विश्राम ले, च्युत हो, मनुष्य हो गया। उस मनुष्यभवमें संयमको अथवा संयमासंयमको परिपालन कर, इस मनुष्यभवसम्बन्धी आयुसे कम वीस सागरोपम आयुको स्थितिवाले आनत-प्राणत कल्पोंके देवोंमें उत्पन्न होकर पुनः यथाक्रमसे मनुष्यायुसे कम बाईस और चौबीस सागरोपमकी स्थितिवाले देवोंमें उत्पन्न होकर, अन्तर्मुहूर्त कम दो छयासठ सागरोपम कालके अन्तिम समयमें मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। इस प्रकारसे अन्तर्मुहूर्त कम दो छयासठ सागरोपम कालप्रमाण अन्तर प्राप्त हुआ । यह ऊपर बताया गया उत्पत्तिका क्रम अव्युत्पन्न जनोके समझानेके लिए कहा है। परमार्थसे तो जिस किसी भी प्रकारसे छयासठ सागरोपम काल पूरा किया जा सकता है।
सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय होता है ॥५॥
जैसे, पहले सासादनसम्यग्दृष्टिका अन्तर कहते हैं-दो जीवोंको आदि करके एक एक अधिकके क्रमसे पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र विकल्पसे उपशमसम्यग्दृष्टि जीव, उपशमसम्यक्त्वके कालमें एक समयको आदि करके अधिकसे अधिक छह आवली कालके अवशेष रह जाने पर सासादन गुणस्थानको प्राप्त हुए। जितना काल अवशेष
१ सासादनसम्यग्दृष्टेरन्तरं नानाजीवापेक्षया जघन्येनैकः समयः । xxx सम्यग्मिथ्यादृष्टेरन्तरं नानाजीवापेक्षया सासादनवत् । स. सि. १, ८.
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