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________________ अल्पबहुत्वानुगम-विषय-सूची क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. दर्शनी जीवोंका पृथक् पृथक् गुणस्थानोंमें एक ही पद अल्पबहुत्व ३२१ होनेके कारण सम्यक्त्व१० लेश्यामार्गणा ३३२-३३९ सम्बन्धी अल्पबहुत्व नहीं है, इस बातका स्पष्टीकरण ३४२ ७८ आदिके चार गुणस्थानवर्ती , असंयतसम्यग्दृष्टि आदि चार कृष्ण, नील और कापोत गुणस्थानवर्ती वेदकसम्यलेश्यावाले जीवोंका अल्प ग्दृष्टि जीवोंका अल्पबहुत्व ३४२-३४३ बहुत्व ३३२ उक्त जीवोंके सम्यक्त्व७९ असंयतसम्यग्दृष्टि गुण सम्बन्धी अल्पबहुत्वके अभास्थानमें उक्त जीवोंका सम्य वका निरूपण ३४३ क्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व ३३२-३३३ असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर ८० आदिके सात गुणस्थानवर्ती उपशांतकषाय गुणस्थान तक तेज और पद्मलेश्यावाले उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंका जीवोंका पृथक् पृथक् अल्प अल्पबहुत्व ३४४ बहुत्व ___३३४-३३५ ९२ उक्त जीवोंके सम्यक्त्वसंबंधी ८१ असंयतसम्यग्दृष्टि आदि चार अल्पबहुत्वके अभावका स्पष्टीगुणस्थानों में उक्त जीवोंका करण सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व ९३ सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्य८२ मिथ्यादृष्टि आदि तेरह गुण ग्मिथ्यादृष्टि और मिथ्यादृष्टि स्थानवर्ती शुक्ललेश्यावाले जीवोंके अल्पबहुत्वका अभावजीवोंका अल्पबहुत्व ३६-३३८ प्रदर्शन ८३ असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्था १३ संज्ञिमार्गणा ३४५-३४६ नसे लेकर दसवे गुणस्थान ९४ आदिके बारह गुणस्थानवर्ती तक शुक्ललेश्यावाले जीवोंका संज्ञी जीवोंका अल्पबहुत्व सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व३३८-३३९ १५ असंही जीवोंके अल्पबहुत्वका ११ भव्यमार्गणा ३३९-३४० अभाव-निरूपण ८४ सर्वगुणस्थानवर्ती भव्य १४ आहारमार्गणा ३४६-३५० जीवोंका अल्पबहुत्व ३३९ ९६ आदिके तेरह गुस्थानवर्ती ८५ अभव्य जीवोंका अल्पबहुत्व ३४० आहारक जीवोंका अल्पबहुत्व३४६-३४७ १२ सम्यक्त्वमार्गणा ३४०-३४५ ९७ चौथेसे दसवें गुणस्थान तक ८६ सामान्य सम्यग्दृष्टि जीवोंका आहारक जीवोंका सम्यक्त्वअल्पबहुत्व ३४० सम्बन्धी अल्पबहुत्व ८७ चौथे गुणस्थानसे लेकर चौद ९८ अनाहारक जीवोंका अल्पहवे गुणस्थान तक क्षायिक बहुत्व ३४८-३४९ सम्यग्दृष्टि जीवोंका अल्प ९९ असंयतसम्यग्दृष्टि गुण ३४०-३४२ स्थानमें अनाहारक जीवोंका ८८ असंयतसम्यग्दृष्टि आदि चार सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व ३४९-३५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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