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________________ पृष्ठनं. (५८) षटखंडागमकी प्रस्तावना क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. | क्रम नं. विषय ५७ अपूर्वकरण और अनिवृत्ति- | ६५ केवलज्ञानी सयोगिकेवली करण, इन दो उपशामक और अयोगिकवली जिनोंका गुणस्थानोंमें प्रवेश करने अल्पबहुत्व ३२१-३२२ वाले जीवोंसे संख्यातगुणित ८ संयममार्गणा ३२२-३३० प्रमाणवाले इन्हीं दो गुणस्थानोंमें प्रवेश करनेवाले ६६ सामान्य संयतोंका प्रमत्तक्षपकोंकी अपेक्षा सूक्ष्मसाम्प __ संयतसे लेकर अयोगिकेवली रायिक उपशामक जीव गुणस्थान तक अल्पबहुत्व ३२२-३२४ विशेष अधिक कैसे हो ६७ उक्त जीवोंका दसवें गुणसकते हैं ? इस शंकाका स्थान तक सम्यक्त्वसम्बन्धी समाधान ३१२ अल्पबहुत्व ३२४-३२५ ५८ असंयतसम्यग्दृष्टि आदि सात ६८ प्रमत्तसंयतादि चार गुण स्थानवर्ती सामायिक और गुणस्थानवर्ती कषायी जीवों छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयतोंका का सम्यक्त्वसम्बन्धी पृथक __ अल्पबहुत्व ३२५-३२६ पृथक् अल्पबहुत्व ३१५-३१६ | ६९ उक्त जीवोंका सम्यक्त्व५९ अकषायी जीवोंका अल्पबहुत्व ३१६ सम्बन्धी अल्पबहुत्व ३२६ ७ ज्ञानमार्गणा ३१६.३२२ ७० परिहारशुद्धिसंयमी प्रमत्त __ और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान६० मत्यज्ञानी, श्रुताशानी और विभंगज्ञानी जीवोंका अल्प वर्ती जीवोंका अल्पबहुत्व ७१ उक्त जीवोंका सम्यक्त्वबहुत्व सम्बन्धी अल्पबहुत्व ६१ आभिनिवोधिकज्ञानी, श्रुत ७२ परिहारशुद्धिसंयतोंके उपशानी और अवधिज्ञानी जीवों शमसम्यक्त्व नहीं होता है, का असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर इस सिद्धान्तका स्पष्टीकरण क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ ७३ सूक्ष्मसांपरायिकसंयमी उपगुणस्थान तक पृथक् पृथक् शामक और क्षपक जीवोंका अल्पबहुत्व ३१७-३१९ अल्पबहुत्व ६२ उक्त जीवोंका दसवें गुण ७४ यथाख्यातविहारशुद्धिसंयस्थान तक सम्यक्त्वसम्बन्धी तोंका अल्पबहुत्व अल्पबहुत्व ३१९ । ७५ संयतासंयतोंका अल्पबहुत्व ६३ प्रमत्तसंयतसे लेकर क्षीण नहीं, है इस बातका स्पष्टीकरण कषाय गुणस्थान तक मन: ७६ संयतासंयत और असंयतपर्ययज्ञानी जीवोंका अल्प सम्यग्दृष्टि जीवोंका सम्यक्त्वबहुत्व सम्बन्धी अल्पबहुत्व ३२८-३३० ६४ उक्त जीवोंका दसवें गुण ९ दर्शनमार्गणा स्थान तक सम्यक्त्वसम्बन्धी ७७ चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अल्पबहुत्व ३२१ | अवधिदर्शनी और केवल ३२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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