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________________ २९९-३०० अल्पबदुत्वानुगम-विषय-सूची (५७) क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. | क्रम नं. . विषय पृष्ठ नं. ३ कायमार्गणा २८९-२९० का सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्प३८ त्रसकायिक और त्रसकायिक बहुत्व पर्याप्त जीवोंका अल्पबहुत्व , ४८ पल्योपमके असंख्यातवें भाग४ योगमार्गणा २९०-३०० प्रमाण क्षायिकसम्यग्दृष्टि योमेसे असंख्यात जीव विग्रह ३९ पांचों मनोयोगी, पांचों क्यों नहीं करते? इस शंकाका . वचनयोगी, काययोगी और समाधान औदारिककाययोगी जीवोंके संभव गुणस्थानसम्बन्धी ___ ५ वेदमार्गणा ३००-३११ और सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्प ४९ प्रारम्भके नव गुणस्थानवर्ती बहुत्वका पृथक् पृथक् निरूपण२९०-२९४ स्त्रीवेदी जीवोंका पृथक् पृथक् ४० औदारिकमिश्रकाययोगी स अल्पबहुत्व ३००-३०२ योगिकेवली, असंयतसम्य ५० असंयतसम्यग्दृष्टि, संयताग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि संयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तऔर मिथ्यादृष्टि जीवोंका संयत, अपूर्वकरण और अनिअल्पबहुत्व २२४-२९५ वृत्तिकरण गुणस्थानवर्ती ४१ वैक्रियिककाययोगी जीवोंका स्त्रीवेदियोका पृथक् पृथक अल्पबहुत्व २९५-२९६ सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व ३०२-३०४ ४२ वैक्रियिकमिश्रकाययोगी सा ५१ प्रारम्भके नव गुणस्थानवर्ती सादनसम्यग्दृष्टि, असंयत पुरुषवेदी जीवोंका पृथक् सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि पृथक् अल्पबहुत्व ३०४-३०६ जीवोंका अल्पबहुत्व ५२ असंयतसम्यग्दृष्टि आदि छह ४३ वैक्रियिकमिश्रकाययोगी असं गुणस्थानवर्ती पुरुषवेदी यतसम्यग्दृष्टि जीवोंका सम्य जीवोंका सम्यक्त्वसम्बन्धी क्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व पृथक् पृथक् अल्पबहुत्व ३०६-३०७ ४४ आहारककाययोगी और ५३ आदिके नव गुणस्थानवर्ती आहारकमिश्रकाययोगी जी नपुंसकवेदी जीवोंका पृथक् वोंका अल्पबहुत्व . २९७२९८ पृथक् अल्पबहुत्व ३०७-३०८ ४५ उपशमसम्यक्त्वके साथ ५४ असंयतसम्यग्दृष्टि आदि छह आहारकऋद्धि क्यों नहीं गुणस्थानवर्ती नपुंसकवेदी होती? इस शंकाका समाधान २९८ जीवोंका सम्यक्त्वसम्बन्धी ४६ कार्मणकाययोगी सयोगिके अल्पबहुत्व ___३०९-३१० वली, सासादनसम्यग्दृष्टि, ५५ अपगतवेदी जीवोंका अल्पअसंयतसम्यग्दृष्टि और मि बहुत्व थ्यादृष्टि जीवोंका अल्पबहुत्व २९८-२९९ ! ६ कषायमार्गणा ३१२-३१६ ४७ असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्था ५६ चारों कषायवाले जीवोंका नमें कार्मणकाययोगी जीवों अल्पबहुत्व ३१२-३१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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