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________________ क्रम नं. विषय २ ओघसे भावानुगमनिर्देश १९४-२०६ १७ मिथ्यादृष्टि जीवके भावका निरूपण १८ मिध्यादृष्टि जीवके अन्य भी ज्ञान-दर्शनादिक भाव पाये जाते हैं, फिर उन्हें क्यों नहीं कहा ? इस शंकाको उठाते हुए गुणस्थानों में संभव भावोंके संयोगी भंगों का निरूपण तथा उक्त शंकाका समाधान १९ सासादनसम्यग्दृष्टि जीवके भावका निरूपण २० दूसरे निमित्तसे उत्पन्न हुए भावको पारिणामिक माना जा सकता है, या नहीं, इस शंकाका सयुक्तिक समाधान २१ सत्त्व, प्रमेयत्व आदिक भाव कारणके विना उत्पन्न होनेवाले पाये जाते हैं, फिर यह कैसे कहा कि कारणके विना उत्पन्न होनेवाले परिणामका अभाव है ? इस शंकाका समाधान भावानुगम-विषय-सूची पृष्ठ नं. १९४-१९६ २२ सासादनसम्यग्दृष्टिपना भी सम्यक्त्व और चारित्र, इन दोनोंके विरोधी अनन्तानुबन्धी कषायके उदयके विना नहीं होता है, इसलिए उसे औदयिक क्यों नहीं मानते हैं ? इस शंकाका समाधान २३ सासादनसम्यक्त्वको छोड़ कर अन्य गुणस्थानसम्बन्धी भावोंमें पारिणामिकपनेका व्यवहार क्यों नहीं किया Jain Education International १९४ १९६ "" १९७ क्रम नं. विषय जाता ? इस शंकाका तथा इसी प्रकारकी अन्य शंकाओंका समाधान २४ सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवके भावका अनेक शंकाओं के समाधानपूर्वक विशद निरू पण प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीवोंके भावोंका तदन्तर्गत शंकासमाधानपूर्वक निरूपण २८ दर्शनमोहनीयकर्मके उपशम, क्षय और क्षयोपशमकी अपेक्षा संयतासंयतोंके औपशमिकादि भाव क्यों नहीं बतलाये ? इस शंकाका समाधान २९ चारों उपशामकोंके भावोंका निरूपण ३० मोहनीयकर्मके १९८-१९९ २५ असंयतसम्यग्दृष्टि जीवके भावोंका अनेक शंका-समाधानोंके साथ विशद विवेचन १९९-२०० २६ असंयत सम्यग्दृष्टिका असंयतत्व औदयिकभावकी अपेक्षा है, इस बातका सूत्रकारद्वारा स्पष्टीकरण २७ संयतासंयत, ( ५१ ) पृष्ठ नं.. उपशमसे रहित अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में औपशमिकभाव कैसे संभव है ? इस शंकाका अनेक प्रकारोंसे सयुक्तिक समाधान For Private & Personal Use Only १९७ ३१ चारों क्षपक, सयोगिकेवली और अयोगिकेवलीके भावोंका तदन्तर्गत अनेकों शंकाओंका समाधान करते हुए विशद विवेचन २०१ २०१-२०४ २०४-२०५ २०३ २०५-२०६ www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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