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(५०)
कम नं.
'विषय
दृष्टि जीवोंका पृथक् पृथक्
अन्तर
१७०-१७१
१३ संज्ञिमार्गणा १७१-१७२
१२० मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर क्षीणकषाय तक संज्ञी जीवोंका अन्तर
१२१ असंशी जीवोंका अन्तर १४ आहारमार्गणा
१२२ आहारक मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका अंतर १७३ १७४ १२३ असंयतसम्यग्दृष्टि आदि
चार गुणस्थानवाले आहारक जीवोंका अन्तर १७४-१७७ १२४ आहारक चारों उपशामकोंका अन्तर
१२५ आहारक चारों क्षपक और सयोगिकेवलीका अन्तर
१७८
१२६ अनाहारक जीवोंका अन्तर १७८-१७९
भावानुगम
१
विषयकी उत्थानिका
१ धवलाकारका और प्रतिज्ञा
षट्खंडागमकी प्रस्तावना
पृष्ठ नं.
क्रम नं.
१७२
१७३-१७९
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१७७-१७८
१८३-१९३
मंगलाचरण
२ भावानुगमकी अपेक्षा निर्देशभेद-निरूपण
३ नामभाव, स्थापनाभाव, द्रव्यभाव और भावभाव, इन चार प्रकारके भावोंका सभेदस्वरूप-निरूपण
४ प्रकृतमें नोआगमभावभाव से प्रयोजनका उल्लेख
५ नाम और स्थापनामें कोई
१८३
""
१८३-१८५
१८५
विषय
विशेषता न होनेसे तीन ही निक्षेप कहना चाहिए ? इस शंकाका सयुक्तिक और सप्र
माण समाधान
६ औदयिकादि पांच भावोंमेंसे प्रकृतमें किस भावसे प्रयोजन है ? भावोंके अनेक भेद हैं, फिर यहां पांच ही भेद क्यों कहे ? इन शंकाओंका समाधान
७ निर्देश, स्वामित्व आदि छह अनुयोगद्वा स्वरूप-निरूपण
भावका
११ औपशमिकचारित्रके भेदका विवरण
१८५-१८६
१८६-१८७
८ औदयिकभावके स्थान और विकल्पकी अपेक्षा भेद तथा स्थानका स्वरूप-निरूपण ९ असिद्धत्व किसे कहते हैं ? जाति, संस्थान, संहनन आदि औदयिकभावका किस भाव में अन्तर्भाव होता है ? इन शंकाओंका समाधान १० औपशमिकभावके स्थान और विकल्पकी अपेक्षा भेद-निरू
पण
सात
१२ क्षायिकभावके स्थान और
पृष्ठ नं.
१६ भंगों के निकालनेके लिए करणसूत्र
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१८७-१८८
१८९
१९०
विकल्पकी अपेक्षा भेद १९०-१९१
95
१३ क्षायोपशमिकभावके स्थान
और विकल्पकी अपेक्षा भेद १९१-१९२ १४ पारिणामिकभावके भेद
१५ सान्निपातिकभावका स्वरूप और भंग निरूपण
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१९३
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