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________________ क्रम नं. ९६ सूक्ष्मसाम्परायसंयमी उपशामक और क्षपक सूक्ष्मसाम्परायिक संयतका अन्तर ९७ यथाख्यातविहारसंयमी चारों गुणस्थानोंका अन्तर ९८ संयतासंयतका अन्तर ९९ असंयमी चारों गुणस्थानोंका पृथक् पृथक् अन्तर ९ दर्शनमार्गणा विषय मिथ्यादृष्टि १०० चक्षुदर्शन जीवोंका अन्तर १०१ चक्षुदर्शनी सासादनसम्यदृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर १०२ असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तकके चक्षुदर्शनी जीवोंका अन्तर १३३-१३५ १३५-१४३ १०३ चक्षुदर्शनी चारों उपशामकोंका अन्तर १०४ चक्षुदर्शनी चारों क्षपकोंका अन्तर १०५ अचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी और केवलदर्शनी जीवोंका पृथक् पृथक् अन्तर Jain Education International अन्तरानुगम-विषय-सूची पृष्ठ नं. १३६-१३७ १३२ १०६ कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावाले मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका "" १३३ १३८-१४१ अन्तर १०७ उक्त तीनों अशुभ लेश्यावाले सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर १०८ मिथ्यादृष्टि से लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक तेजो १३५ १४३ १० लेश्यामार्गणा १४३-१५४ १४१ १४२ १४३-१४५ १४५-१४६ विषय क्रम नं. लेश्या और पद्मलेश्यावाले जीवोंका पृथक् पृथक् अंतर १४६-१४९ १०९ मिथ्यादृष्टिसे लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तक शुक्ललेश्यावाले जीवोंका पृथक् पृथक् अन्तर ११ भव्यमार्गणा ११० समस्त गुणस्थानवर्ती भव्यजीवोंका अन्तर १११ अभव्य जीवोंका अन्तर ( ४९ ) पृष्ठ नं. १४९- १५४ १५४ For Private & Personal Use Only 39 99 १२ सम्यक्त्वमार्गणा १५५-१७१ १५५-१५६ ११२ असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक सम्यग्दृष्टि जीवोंका पृथक् पृथक् अन्तर ११३ क्षायिकसम्यक्त्वी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका अन्तर १५६ - १५७ ११४ क्षायिकसम्यक्त्वी संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयतका अन्तर ११५ क्षायिकसम्यक्त्वी चारों उपशामकोंका अन्तर ११६ क्षायिकसम्यक्त्वी चारों क्षपक, सयोगिकेवली और अयोगिकेवलीका अन्तर ११७ असंयतसम्यग्दृष्टि आदि चार गुणस्थानवर्ती वेदकसम्यग्दष्टि जीवोंका पृथक् पृथक् अन्तर ११८ असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर उपशान्तकषाय गुणस्थान तक उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंका पृथक् पृथक् अन्तर १६५-१७० ११९ सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और मिथ्या १५७-१६० १६०-१६१ १६१-१६२ १६२-१६५ www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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