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________________ १०१ (४८) षट्खंडागमकी प्रस्तावना क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. | क्रम नं. विषय पृष्ठ नं. ७४ स्त्रीवेदी अपूर्वकरण और ८६ आभिनिवोधिकज्ञानी, श्रुतअनिवृत्तिकरण उपशामकका ज्ञानी और अवधिज्ञानी असंयतअन्तर ९९-१०० ____ सम्यग्दृष्टि जीवोंका अन्तर ११४-११६ ७५ स्त्रीवेदी अपूर्वकरण और ८७ उक्त तीनों शानवाले संयताअनिवृत्तिकरण क्षपकका _ संयतोंका तदन्तर्गत शंकाअन्तर समाधानपूर्वक अंतर-निरूपण११६:११९ ७६ पुरुषवेदी मिथ्यादृष्टियोंका ८८ संशी, सम्मूच्छिम पर्याप्तक अन्तर ७७ पुरुषवेदी सासादनसम्य जीवोंमें अवधिज्ञान और उपग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि शमसम्यक्त्वका अभाव है, योंका अन्तर यह कैसे जाना? इस शंकाका ७८ असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर तथा इसीसे सम्बन्धित अन्य अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तकके अनेको शंकाओंका सप्रमाण पुरुषवेदी जीवोंका अन्तर १०२-१०४ समाधान ७९ पुरुषवेदी अपूर्वकरण और ८९ तीनों शानवाले प्रमत्त और अनिवृत्तिकरण उपशामक अप्रमत्तसंयतोका अन्तर तथा तथा क्षपकोंका पृथक् पृथक् तदन्तर्गत विशेषताओंका अन्तर-प्रतिपादन - १०४-१०६ प्रतिपादन ८० नपुंसकवेदी मिथ्यादृष्टि ९. तीनों शानवाले चारों उपजीवोंका अन्तर शामक और चारों क्षपकोंका ८१ सासादनसम्यग्दृष्टिसे लेकर पृथक पृथक् अन्तर-निरूपण १२२-१२४ अनिवृत्तिकरण गुणस्थान तक ९१ प्रमत्तसंयतसे लेकर क्षीणपृथक् पृथक् नपुंसकवेदी कषाय गुणस्थान तक मन:जीवोंका अन्तर १०७-१०९ ।। पर्ययज्ञानी जीवोंका पृथक् ८२ अपगतवेदी जीवोंका अन्तर १०९-१११ पृथक् अन्तर-निरूपण १२४-१२७ ६ कषायमार्गणा १११-११३ ९२ केवलज्ञानी जीवोंका अन्तर १२७ ८३ मिथ्याष्टिसे लेकर सूक्ष्म ८ संयममार्गणा १२८-१३५ साम्पराय गुणस्थान तक चारों कषायवाले जीवोंका ९३ प्रमत्तसंयतसे लेकर अयोगितदन्तर्गत शंका-समाधान केवली गुणस्थान तक समस्त पूर्वक अन्तर-निरूपण १११-११२ संयतोका पृथक् पृथक् अन्तर ८४ अकषायी जीवोंका अन्तर ११३ / ९४ सामायिक और छेदोप- . ७ ज्ञानमार्गणा ११४-१२७ स्थापनासंयमीप्रमत्तसंयतादि ८५ मत्यज्ञानी, श्रुतज्ञानी और चारों गुणस्थानवी जीवोंका विभंगशानी मिथ्यादृष्टि तथा पृथक् पृथक् अन्तर १२८-१३१ सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका ९५ परिहारशुद्धिसंयमी प्रमत्त पृथक् पृथक् अन्तर ११४ | और अप्रमत्तसंयतोंका अन्तर १३१ ११९-१२२ १०६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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