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________________ विषय पंचेन्द्रियों में उत्पन्न कराकर और सम्यक्त्वको ग्रहण कराकर मिथ्यात्वके द्वारा अन्तरको प्राप्त क्यों नहीं कराया ? इत्यादि शंकाओंका क्रम नं. समाधान ५५ पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रियपर्याप्तकों में चारों उपशामकोंका अन्तर ५६ उक्त जीवोंमें चारों क्षपक, सयोगिकेवली और अयोगिकेवलीका अन्तर ५७ पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका अन्तर १३ काय मार्गणा ५८ पृथिवीकायिक आदि चार स्थावर कायिकों का अन्तर ५९ वनस्पतिकायिक बादर, सूक्ष्म और पर्याप्तक तथा अपर्याप्तक जीवोंका अन्तर ६० त्रसकायिक और त्रसकायिकपर्याप्तकों में मिथ्यादृष्टिसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक जीवोंका पृथक् पृथक् अन्तर-निरूपण ६१ त्रसकायिक लब्ध्यपर्यातकोंका अन्तर अन्तरानुगम-विषय-सूची पृष्ठ नं. Jain Education International ७३ ७५-७६ ७७ " 612-261 ७८ ७९-८० ८०-८६ ८६-८७ ४ योगमार्गणा ८७-९४ ६२ पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, काययोगी और औदारिककाययोगी मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत और सयोगिकेवली जिनका अन्तर ६३ उक्त योगवाले सासादन ८७ क्रम नं. विषय सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर ६४ उक्त योगवाले चारों उपशामक और चारों क्षपकोंका अन्तर ६५ एक योगके परिणमन - काल से गुणस्थानका काल संख्यातगुणा है, यह कैसे जाना ? इस शंकाका समाधान ६६ औदारिकमिश्रकाययोगी मिथ्यादृष्टि, सासादन सम्यग्दृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और सयोगिकेवलीका पृथक् पृथक् अन्तर- प्रतिपादन ६७ वैक्रियिककाययोगी चारों गुणस्थानवर्ती जीवोंका अन्तर ६८ वैक्रियिकमिश्रकाययोगी मि थ्यादृष्टि, सासादनसम्यदृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका अन्तर और ६९ आहारककाययोगी आहारक मिश्रकाययोगी प्रमत्तसंयतों का अन्तर ७० कार्मणकाययोगी मिथ्यादृष्टि, सासादन सम्यग्दृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और सयोगिकेवलीका अन्तर ५ वेदमार्गणा ७१ स्त्रीवेदी मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर ७२ स्त्रीवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर ७३ असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तकके स्त्रीवेदी जीवोंका अन्तर For Private & Personal Use Only ( ४७ ) पृष्ठ नं. ८८ ८८-८९ ८९ ८९-९१ ९१ ९१-९३ ९३ ९४-१११ ९४ ९५-९६ ९७-९८ www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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