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________________ विषय-परिचय (३९) (कुमति, कुश्रुत और विभंगावधि ), तीन दर्शन ( चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन ), पांच लब्धियां (क्षायोपशमिक दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य ), क्षायोपशमिकसम्यक्त्व, क्षायोपशमिकचारित्र और संयमासंयम । इन पूर्वोक्त चारों भावोंसे विभिन्न, कौके उदय, उपशम आदिकी अपेक्षा न रखते हुए स्वतः उत्पन्न भावोंको परिणामिकभाव कहते हैं । इसके तीन भेद हैं- १ जीवत्व, २ भव्यत्व और ३ अभव्यत्व । इन उपर्युक्त भावोंके अनुगमको भावानुगम कहते हैं । इस अनुयोगद्वारमें भी ओघ और आदेशकी अपेक्षा भावोंका विवेचन किया गया हैं। ओघनिर्देशकी अपेक्षा प्रश्न किया गया है कि 'मिथ्यादृष्टि' यह कौनसा भाव है ? इसके उत्तरमें कहा गया है कि मिथ्यादृष्टि यह औदयिकभाव है, क्योंकि, जीवोंके मिथ्या दृष्टि मिथ्यात्वकर्मके उदयसे उत्पन्न होती है । यहां यह शंका उठाई गई है कि, जब मिथ्यादृष्टि जीवके मिथ्यात्वभावके अतिरिक्त ज्ञान, दर्शन, गति, लिंग, कषाय भव्यत्व आदि और भी भाव होते हैं, तब यहां केवल एक औदयिकभावको ही बतानका क्या कारण है ? इस शंकाके उत्तरमें कहा गया है कि यद्यपि मिथ्यादृष्टि जीवके औदयिकभावके अतिरिक्त अन्य भाव भी होते हैं, किन्तु वे मिथ्यादृष्टित्वके कारण नहीं हैं, एक मिथ्यात्वकर्मका उदय ही मिथ्यादृष्टित्वका कारण होता है, इसलिए मिथ्यादृष्टिको औदयिकभाव कहा गया है। सासादनगुणस्थानमें पारिणामिकभाव बताया गया है, और इसका कारण यह कहा गया हैं कि जिस प्रकार जीवत्व आदि पारिणामिक भावोंके लिए कर्मोंका उदय आदि कारण नहीं है, उसी प्रकार सासादनसम्यक्त्वके लिए दर्शनमोहनीयकर्मका उदय, उपशम, क्षय और क्षयोपशम, ये कोई भी कारण नहीं हैं, इसलिए इसे यहां पारिणामिकभाव ही मानना चाहिए । ____ सम्यग्मिथ्यात्वगुणस्थानमें क्षायोपशमिकभाव होता है। यहां शंका उठाई गई है कि प्रतिबंधीकर्मके उदय होनेपर भी जो जीवके स्वाभाविक गुणका अंश पाया जाता है, वह क्षायोपशमिक कहलाता है, किन्तु सम्यग्मिथ्यात्वकर्मके उदय रहते हुए तो सम्यक्त्वगुणकी कणिका भी अवशिष्ट नहीं रहती है, अन्यथा सम्यग्मिथ्यात्वकर्मके सर्वघातीपना नहीं बन सकता है । अतएव सम्यग्मिथ्यात्वभाव क्षायोपशमिक सिद्ध नहीं होता है ? इसके उत्तरमें कहा गया है कि सम्यग्मिध्यात्वकर्मके उदय होनेपर श्रद्धानाश्रद्धानात्मक एक मिश्रभाव उत्पन्न होता है । उसमें जो श्रद्धानांश है, वह सम्यक्त्वगुणका अंश है । उसे सम्यग्मिध्यात्वकर्मका उदय नष्ट नहीं करता है, अतएव सम्यग्मिथ्यात्वभाव क्षायोपशमिक है । असंयतसम्यग्दृष्टिगुणस्थानमें औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक, ये तीन भाव पाये जाते हैं, क्योंकि, यहांपर दर्शनमोहनीयकर्मका उपशम, क्षय और क्षयोपशम, ये तीनों होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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