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षट्वंडागमकी प्रस्तावना
पुस्तक ४, पृष्ठ ४५६ १३ शंका- पृष्ठ ४५६ में · अण्णलेस्सागमणासंभवा ' का अर्थ · अन्य लेश्याका आगमन असंभव है ' किया है, होना चाहिए- अन्य लेश्यामें गमन असंभव है ?
(जैनसन्देश, ता. ३०-४-४२) समाधान-किये गये अर्थमें और सुझाये गये अर्थमें कोई भेद नहीं है । ' अन्य लेश्याका आगमन ' और 'अन्य लेश्यामें गमन ' कहनेसे अर्थमें कोई अन्तर नहीं पड़ता। मूलमें भी दोनों प्रकारके प्रयोग पाये जाते हैं। उदाहरणार्थ- प्रस्तुत पाठके ऊपर ही वाक्य है'हीयमाण-वड्डमाणकिण्हलेस्साए काउलेस्साए वा अच्छिदस्स णीललेस्सा आगदा' अर्थात् हीयमान कृष्णलेश्यामें अथवा वर्धमान कापोतलेश्यामें विद्यमान किसी जीवके नीललेश्या आ गई, इत्यादि।
४ विषय-पारचय
जीवस्थानकी आठ प्ररूपणाओं से प्रथम पांच प्ररूपणाओंका वर्णन पूर्व-प्रकाशित चार भागोंमें किया गया है। अब प्रस्तुत भागमें अवशिष्ट तीन प्ररूपणाएं प्रकाशित की जा रही हैं- अन्तरानुगम, भावानुगम और अल्पबहुत्वानुगम ।
१ अन्तरानुगम विवक्षित गुणस्थानवी जीवका उस गुणस्थानको छोड़कर अन्य गुणस्थानमें चले जाने पर पुनः उसी गुणस्थानकी प्राप्तिके पूर्व तकके कालको अन्तर, व्युच्छेद या विरहकाल कहते हैं । सबसे छोटे विरहकालको जघन्य अन्तर और सबसे बड़े विरहकालको उत्कृष्ट अन्तर कहते हैं । गुणस्थान और मार्गणास्थानोंमें इन दोनों प्रकारोंके अन्तरोंके प्रतिपादन करनेवाले अनुयोगद्वारको अन्तरानुगम कहते हैं।
पूर्व प्ररूपणाओंके समान इस अन्तरप्ररूपणामें भी ओघ और आदेशकी अपेक्षा अन्तरका निर्णय किया गया है, अर्थात् यह बतलाया गया है कि यह जीव किस गुणस्थान या मार्गणास्थानसे कमसे कम कितने काल तक के लिए और अधिकसे अधिक कितने काल तक के लिए अन्तरको प्राप्त होता है।
... उदाहरणार्थ-ओघकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? इस प्रश्नके उत्सरमें बताया गया है कि नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, निरन्तर है ।
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