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________________ १, ८, ३८०.] अप्पाबहुगाणुगमे अणाहारय-अप्पाबहुगपरूवणं सासणसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ३७७ ॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । असंजदसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ३७८ ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । मिच्छादिट्ठी अणंतगुणा ॥ ३७९ ॥ को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो, सिद्धेहि वि अणंतगुणो, अणंताणि सव्वजीवरासिपढमवग्गमूलाणि । असंजदसम्मादिहिट्ठाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी ॥३८०॥ कुदो ? संखेज्जजीवपमाणत्तादो। अनाहारकोंमें अयोगिकेवली जिनोंसे सासादनसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ।। ३७७॥ गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। अनाहारकोंमें सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ ३७८ ॥ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। अनाहारकोंमें असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणित हैं।॥३७९॥ गुणकार क्या है ? अभव्यसिद्धोंसे अनन्तगुणित, सिद्धोंसे भी अनन्तगुणित राशि गुणकार है, जो सर्व जीवराशिके अनन्त प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। अनाहारकोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥ ३८० ॥ क्योंकि, अनाहारक उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंका प्रमाण संख्यात है। १ सासादनसम्यग्दृष्टयोऽसंख्येयगुणाः । स. सि. १, ८. २ असंयतसम्यग्दृष्टयोऽसंख्येयगुणाः । स. सि. १, ८. ३ मिच्यादृष्टयोऽनन्तगुणाः । स. सि. १, ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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