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________________ ३४८ ] छक्खडागमे जीवाणं असंजदसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ३६९ ॥ मिच्छादिट्ठी अनंतगुणा ॥ ३७० ॥ दाणि सुत्ताणि सुगमाणि । प्पाबहुअमोघं ॥ ३७१ ॥ असंजदसम्मादिट्ठि-संजदासंजद- पमत्त - अप्पमत्तसंजदट्टाणे सम्मत्त एवं तिसु अद्धासु ॥ ३७२ ॥ सव्वत्थोवा उवसमा ॥ ३७३ ॥ खवा संखेज्जगुणा ॥ ३७४ ॥ दाणि सुत्ताणि सुगमाणि । • अणाहारसु सव्वत्थोवा सजोगिकेवली ॥ ३७५ ॥ कुदो ? सहियमाणत्तादो । अजोगिकेवली संखेज्जगुणा ॥ ३७६ ॥ कुदो ? दुरूऊणछस्सदपमाणत्तादो । सम्यग्मिथ्यादृष्टियों से असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं || ३६९ ॥ असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे मिध्यादृष्टि जीव अनन्तगुणित हैं || ३७० ॥ [ १, ८, ३६९. सूत्र सुगम हैं । आहारकोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व ओघके समान है ॥ ३७१ ॥ इसी प्रकार अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानोंमें सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व ओके समान है || ३७२ ॥ उक्त गुणस्थानोंमें उपशामक जीव सबसे कम हैं ॥ ३७३ ॥ उपशामकोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ।। ३७४ ।। ये सूत्र सुगम हैं। अनाहारकों में सयोगिकेवली जिन सबसे कम हैं ॥ ३७५ ॥ १ अनाहारकाणां सर्वतः स्तोकाः सयोगकेवलिनः । स. सि. १, ८. २ अयोगकेवलिनः संख्येयगुणाः । स. सि. १,८. क्योंकि, उनका प्रमाण साठ है । अनाहारकों में अयोगिकेवली जिन संख्यातगुणित हैं ॥ ३७६ ॥ क्योंकि, उनका प्रमाण दो कम छह सौ अर्थात् पांच सौ अठ्यानवे (५९८ ) है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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