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छक्खडागमे जीवाणं
असंजदसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ३६९ ॥ मिच्छादिट्ठी अनंतगुणा ॥ ३७० ॥ दाणि सुत्ताणि सुगमाणि ।
प्पाबहुअमोघं ॥ ३७१ ॥
असंजदसम्मादिट्ठि-संजदासंजद- पमत्त - अप्पमत्तसंजदट्टाणे सम्मत्त
एवं तिसु अद्धासु ॥ ३७२ ॥ सव्वत्थोवा उवसमा ॥ ३७३ ॥ खवा संखेज्जगुणा ॥ ३७४ ॥ दाणि सुत्ताणि सुगमाणि ।
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अणाहारसु सव्वत्थोवा सजोगिकेवली ॥ ३७५ ॥
कुदो ? सहियमाणत्तादो ।
अजोगिकेवली संखेज्जगुणा ॥ ३७६ ॥ कुदो ? दुरूऊणछस्सदपमाणत्तादो ।
सम्यग्मिथ्यादृष्टियों से असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं || ३६९ ॥ असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे मिध्यादृष्टि जीव अनन्तगुणित हैं || ३७० ॥
[ १, ८, ३६९.
सूत्र सुगम हैं ।
आहारकोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व ओघके समान है ॥ ३७१ ॥
इसी प्रकार अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानोंमें सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व ओके समान है || ३७२ ॥
उक्त गुणस्थानोंमें उपशामक जीव सबसे कम हैं ॥ ३७३ ॥ उपशामकोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ।। ३७४ ।। ये सूत्र सुगम हैं।
अनाहारकों में सयोगिकेवली जिन सबसे कम हैं ॥ ३७५ ॥
१ अनाहारकाणां सर्वतः स्तोकाः सयोगकेवलिनः । स. सि. १, ८.
२ अयोगकेवलिनः संख्येयगुणाः । स. सि. १,८.
क्योंकि, उनका प्रमाण साठ है ।
अनाहारकों में अयोगिकेवली जिन संख्यातगुणित हैं ॥ ३७६ ॥
क्योंकि, उनका प्रमाण दो कम छह सौ अर्थात् पांच सौ अठ्यानवे (५९८ ) है ।
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