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________________ १, ८, ३६८.] अप्पाबहुगाणुगमे आहारय-अप्पाबहुगपरूवणं [३४० खवा संखेज्जगुणा ॥ ३६० ॥ अद्रुत्तरसदपमाणतादो। खीणकसायवीदरागछदुमत्था तत्तिया चेव ॥ ३६१ ॥ सुगममेदं । सजोगिकेवली पवेसणेण तत्तिया चेव ॥ ३६२ ॥ सजोगिकेवली अद्धं पडुच्च संखेज्जगुणा ॥ ३६३ ॥ अप्पमत्तसंजदा अक्खवा अणुवसमा संखेज्जगुणा ॥३६४ ॥ पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा ॥ ३६५॥ एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि । संजदासंजदा असंखेज्जगुणा ॥ ३६६ ॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। सासणसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ३६७ ॥ सम्मामिच्छादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ ३६८॥ आहारकोंमें उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ३६०॥ क्योंकि, उनका प्रमाण एक सौ आठ है । आहारकोंमें क्षीणकषायवीतरागछमस्थ जीव पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ ३६१ ॥ यह सूत्र सुगम है। आहारकोंमें सयोगिकेवली जिन प्रवेशकी अपेक्षा पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ ३६२॥ सयोगिकेवली जिन संचयकालकी अपेक्षा संख्यातगुणित हैं ॥३६३॥ सयोगिकेवली जिनोंसे अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ३६४ ॥ अप्रमत्तसंयतोंसे प्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ३६५ ॥ ये सूत्र सुगम हैं। आहारकोंमें प्रमत्तसंयतोंसे संयतासंयत जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ ३६६ ॥ गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है। आहारकोंमें संयतासंयतोंसे सासादनसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं॥३६७॥ सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ।। ३६८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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