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________________ छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, ८, ३४७. उवसमसम्मादिट्टीसु तिसु अद्धासु उवसमा पवेसणेण तुल्ला थोवा ॥ ३४७ ॥ ३४४ ] उवसंतकसायवीदरागछदुमत्था तत्तिया चेव ॥ ३४८ ॥ अप्पमत्त संजदा अणुवसमा संखेज्जगुणा ।। ३४९ ॥ दाणि सुत्ताणि सुगमाणि । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा ॥ ३५० ॥ को गुणगारो ? दो रूवाणि । संजदासंजदा असंखेज्जगुणा ॥ ३५९ ॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । असंजदसम्मादिट्टी असंखेज्जगुणा ॥ ३५२ ॥ उपशमसम्यग्दृष्टियों में अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में उपशामक जीव प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और अल्प हैं || ३४७ | उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ जीव पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ ३४८ ॥ उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थोंसे अनुपशामक अप्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ३४९ ॥ ये सूत्र सुगम हैं । उपशमसम्यग्दृष्टियों में अप्रमत्तसंयतोंसे प्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ३५० ॥ गुणकार क्या है ? दो रूप गुणकार है । उपशमसम्यग्दृष्टियों में प्रमत्तसंयतों से संयतासंयत जीव असंख्यातगुणित हैं ।। ३५१ ।। गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है । उपशमसम्यग्दृष्टियों में संयतासंयतों से असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित Jain Education International हैं ।। ३५२ ॥ १ औपशमिकसम्यग्दृष्टीनां सर्वतः स्तोकाश्रत्वार उपशमकाः । स. सि. १, ८. २ अप्रमत्ताः संख्येयगुणाः । स. सि. १, ८. ४ संयतासंयताः ( अ ) संख्येयगुणाः । स. सि. १, ८. ५ असंयतसम्यग्दृष्टयोऽसंख्येयगुणाः । स. सि. १,८. ३ प्रमत्ताः संख्येयगुणाः । स. सि. १, ८. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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