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________________ १, ८, ३४६.] अप्पाबहुगाणुगमे वेदगसम्मादिहि-अप्पाबहुगपरूवणं [३४३ पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा ॥ ३४३ ॥ को गुणगारो ? दो रूवाणि। संजदासजदा असंखेज्जगुणा ॥ ३४४ ॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । असंजदसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ३४५॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेजदिभागो । असंजदसम्मादिहि-संजदासंजद-पमत्त-अप्पमत्तसंजदट्ठाणे वेदगसम्मत्तस्स भेदो पत्थि ॥ ३४६॥ एत्थ भेदसद्दो अप्पाबहुअपज्जाओ घेत्तव्यो, सद्दाणमणेयत्थत्तादो। वेदगसम्मत्तस्स भेदो अप्पाबहुअं णत्थि त्ति उत्तं होदि । वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें अप्रमत्तसंयतोंसे प्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ॥३४३॥ गुणकार क्या है ? दो रूप गुणकार है। वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें प्रमत्तसंयतोंसे संयतासंयत जीव असंख्यातगुणित हैं ॥३४४॥ गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें संयतासंयतोंसे असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ ३४५ ॥ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें वेदकसम्यक्त्वका भेद नहीं है ॥ ३४६॥ यहांपर भेद शब्द अल्पबहुत्वका पर्यायवाचक ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि, शब्दोंके अनेक अर्थ होते हैं। इस प्रकार इस सूत्र द्वारा यह अर्थ कहा गया है कि इन गुणस्थानोंमें वेदकसम्यक्त्वका भेद अर्थात् अल्पबहुत्व नहीं है। १ प्रमत्ताः संख्येयगुणाः । स. सि. १, ८. २ संयतासंयताः (अ.) संख्येयगुणाः स. सि. १,८. ३ असंयतसम्यग्दृष्टयोऽसंख्येयगुणाः । स. सि. १,८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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