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३२८ ]
छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ८, २७२.
सुहुमसां पराइयमुद्धिसंजदेसु सुहुमसां पराइयज्वसमा थोवा'
॥ २७२ ॥
कुदो ? चउवण्णपमाणत्तादो ।
खवा संखेज्जगुणा ॥ २७३ ॥
को गुणगारो ? दोणि रुवाणि ।
जधाक्खादविहार सुद्धिसंजदेसु अक्साइभंगो ॥ २७४ ॥ जधा अकसाईणमप्पाबहुगं उत्तं तथा जहाक्खादविहार सुद्धिसंजदाणं पि कादव्त्रमिदि उत्तं होदि ।
संजदासंजदेसु अप्पाबहुअं णत्थि ॥ २७५ ॥
पदत्ताद । एत्थ सम्मत्तप्पा बहुअं उच्चदे । तं जहासंजदासंजदाणे सव्वत्थोवा खइयसम्मादिट्टी ॥ २७६ ॥ कुदो ? संखेज्जपमाणत्तादो ।
सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयतोंमें सूक्ष्मसाम्परायिक उपशामक जीव अल्प
हैं ॥ २७२ ॥
क्योंकि, उनका प्रमाण चौपन है । सूक्ष्मसाम्परायिक शुद्धिसंयतों में उपशामकों से क्षपक जीव संख्यातगुणित
हैं ।। २७३ ॥
गुणकार क्या है ? दो रूप गुणकार है ।
यथाख्यातविहारशुद्धिसंयतों में अल्पबहुत्व अकषायी जीवोंके समान है || २७४॥ जिस प्रकार अकषायी जीवोंका अल्पबहुत्व कहा है, उसी प्रकार यथाख्यातविहारशुद्धिसंयतोंका भी अल्पबहुत्व करना चाहिए, यह अर्थ कहा गया है ।
संयतासंयत जीवोंमें अल्पबहुत्व नहीं है ।। २७५ ।।
क्योंकि, संयतासंयत जीवोंके एक ही गुणस्थान होता है । यहांपर सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व कहते हैं । वह इस इस प्रकार है
संयतासंयत गुणस्थान में क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं || २७६ ॥ क्योंकि, उनका प्रमाण संख्यात ही है ।
१ सूक्ष्मसाम्परायशुद्धिसंयतेषु उपशमकेभ्यः क्षपकाः संख्ये यगुणाः । स. सि. १, ८.
२ यथाख्यातविहारशुद्धिसंयतेषु उपशान्तकषायेभ्यः क्षीणकषायाः संख्येयगणाः । अयोगिकेवलिनस्तावन्त ए । स्योगिकेवलिनः संख्येयगुणाः । स. सि. १,८०
३. संत संतान नास्त्यस्य बहुत्वम् । स. सि. १, ८.
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