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________________ १, ८, २७१.] अप्पाबहुगाणुगमे संजद-अप्पाबहुगपख्वणं [३२७ परिहारसुद्धिसंजदेसु सव्वत्थोवा अप्पमत्तसंजदा ॥२६८ ॥ सुगममेदं। पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा ॥२६९ ॥ को गुणगारो ? दो रूवाणि। पमत्त-अप्पमत्तसंजदट्टाणे सव्वत्थोवा खइयसम्मादिट्ठी ॥२७०॥ कुदो ? खइयसम्मत्तस्स पउरं संभवाभावा । वेदगसम्मादिट्टी संखेज्जगुणा ॥ २७१॥ कुदो ? खओवसमियसम्मत्तस्स पउरं संभवादो । एत्थ उवसमसम्मत्तं णत्थि, तीसं वासेण विणा परिहारसुद्धिसंजमस्स संभवाभावा । ण च तेत्तियकालमुवसमसम्मतस्सावट्ठाणमस्थि, जेण परिहारसुद्धिसंजमेण उवसमसम्मत्तस्सुवलद्धी होज ? ण च परिहारसुद्धिसंजमछदंतस्स उवसमसेडीचडणटुं दंसणमोहणीयस्सुवसामण्णं पि संभवइ, जेणुवसमसेडिम्हि दोण्हं पि संजोगो होज । परिहारशुद्धिसंयतोंमें अप्रमत्तसंयत जीव सबसे कम हैं ॥ २६८ ॥ यह सूत्र सुगम है। परिहारशुद्धिसंयतोंमें अप्रमत्तसंयतोंसे प्रमत्तसंयत संख्यातगुणित हैं ॥ २६९ ॥ गुणकार क्या है ? दो रूप गुणकार है। परिहारशुद्धिसंयतोंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥ २७० ॥ क्योंकि, क्षायिकसम्यक्त्वका प्रचुरतासे होना संभव नहीं है। ___ परिहारशुद्धिसंयतोंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २७१ ॥ _ क्योंकि, क्षायोपशमिकसम्यक्त्वका प्रचुरतासे होना संभव है। यहां परिहारशुद्धिसंयतोंमें उपशमसम्यक्त्व नहीं होता है, क्योंकि, तीस वर्षके विना परिहारशुद्धिसंयमका होना संभव नहीं है। और न उतने काल तक उपशमसम्यक्त्वका अवस्थान रहता है, जिससे कि परिहारशुद्धिसंयमके साथ उपशमसम्यक्त्वकी उपलब्धि हो सके ? दूसरी बात यह है कि परिहारशुद्धिसंयमको नहीं छोड़नेवाले जीवके उपशमश्रेणीपर चढ़नेके लिए दर्शनमोहनीयकर्मका उपशमन होना भी संभव नहीं है, जिससे कि उपशमश्रेणीमें उपशमसम्यक्त्व और परिहारशुद्धिसंयम, इन दोनोंका भी संयोग हो सके। १ परिहारविशुद्धिसंयतेषु अप्रमतेभ्यः प्रमत्ताः संख्येयाणाः । स.सि. १, .......... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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