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________________ ३२६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ८, २६१. पमत्तसंजदा संखेजगुणा ॥२६१ ॥ एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि । पमत्त-अप्पमत्तसंजदट्ठाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी ॥२६२॥ कुदो ? अंतोमुहुत्तसंचयादो। खइयसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ २६३ ॥ पुव्वकोडिसंचयादो। वेदगसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ २६४ ॥ खओवसमियसम्मत्तादो । एवं दोसु अद्धासु ॥ २६५॥ सव्वत्थोवा उवसमा ॥ २६६ ॥ खवा संखेज्जगुणा ॥ २६७॥ एदाणि तिण्णि वि सुत्ताणि सुगमाणि । अप्रमत्तसंयतोंसे प्रमत्तसंयत संख्यातगुणित हैं ॥ २६१ ॥ ये सूत्र सुगम हैं। सामायिक और छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयतोंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥ २६२ ॥ क्योंकि, उनका संचयकाल अन्तर्मुहूर्त है। सामायिक और छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयतोंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ।। २६३ ॥ क्योंकि, उनका संचयकाल पूर्वकोटी वर्ष है। सामायिक और छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयतोंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २६४॥ क्योंकि, वेदकसम्यग्दृष्टियोंके क्षायोपशमिक सम्यक्त्व होता है (जिसकी प्राप्ति सुलभ है)। इसी प्रकार उक्त जीवोंका अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण, इन दोनों गुणस्थानोंमें सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व है ॥ २६५॥ उक्त जीवोंमें उपशामक सबसे कम हैं ॥ २६६ ॥ उपशामकोंसे क्षपक संख्यातगुणित हैं ॥ २६७ ॥ ये तीनों ही सूत्र सुगम हैं। १ प्रमाः संख्येयगुणाः । स. सि. १, ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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