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________________ १, ८, २६०.] अप्पाबहुगाणुगमे संजद-अप्पाबहुगपरूवणं [ ३२५ कुदो ? पुव्वकोडिसंचयादो। वेदगसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ २५४ ॥ खओवसमियसम्मत्तादो। एवं तिसु अद्धासु ॥ २५५ ॥ सव्वत्थोवा उवसमा ॥ २५६ ॥ खवा संखेज्जगुणा ॥ २५७ ॥ एदाणि तिण्णि वि सुत्ताणि सुगमाणि । सामाइयच्छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदेसु दोसु अद्धासु उवसमा पवेसणेण तुल्ला थोवा ॥ २५८ ॥ खवा संखेज्जगुणा ॥२५९ ॥ अप्पमत्तसंजदा अक्खवा अणुवसमा संखेज्जगुणा ॥ २६०॥ क्योंकि, उनका संचयकाल पूर्वकोटी वर्ष है। संयतोंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २५४ ॥ क्योंकि, वेदकसम्यग्दृष्टियोंके क्षायोपशमिक सम्यक्त्व होता है (जिसकी प्राप्ति ___ इसी प्रकार संयतोंमें अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानोंमें सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व है ॥ २५५ ॥ उक्त गुणस्थानों में उपशामक जीव सबसे कम हैं ॥ २५६ ॥ उपशामकोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ।। २५७ ॥ ये तीनों ही सूत्र सुगम हैं। सामायिक और छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयतोंमें अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण, इन दोनों गुणस्थानों में उपशामक जीव प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और अल्प हैं ॥ २५८ ॥ उपशामकोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २५९ ॥ क्षपकोंसे अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत संख्यातगुणित हैं ।। २६०॥ १ संयमानुवादेन सामायिकच्छेदोपस्थापनशुद्धिसंयतेषु द्वयोरुपशमकयोस्तुल्यसंख्या । स. सि. १, ८. २ ततः संख्येयगुणौ क्षपको । स. सि. १, ८. ३ अप्रमत्ताः संख्येयगुणा: स. सि. १, ८. सुलभ है)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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