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________________ ३२४ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ८, २४८. सजोगिकेवली अजोगिकेवली पवेसणेण दो वि तुल्ला तत्तिया चेव ॥ २४८॥ सुबोज्झमेदं । सजोगिकेवली अद्धं पडुच्च संखेज्जगुणा ॥ २४९ ॥ कुदो ? एगसमयादो संचयकालसमूहस्स संखेज्जगुणतुवलंभा। अप्पमत्तसंजदा अक्खवा अणुवसमा संखेज्जगुणा ॥ २५० ॥ को गुणगारो ? संखेज्जसमया । एत्थ ओघकारणं चिंतिय बत्तव्वं । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा ॥२५१ ॥ को गुणगारो ? दोण्णि रूवाणि । पमत्त-अप्पमत्तसंजदट्टाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी॥२५२॥ कुदो ? अंतोमुहुत्तसंचयादो। खइयसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥२५३ ॥ संयतोंमें सयोगिकेवली और अयोगिकेवर्ली जिन ये दोनों ही प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ २४८ ॥ यह सूत्र सुगम है। संयतोंमें सयोगिकेवली संचयकालकी अपेक्षा संख्यातगुणित हैं ॥ २४९ ॥ क्योंकि, एक समयकी अपेक्षा संचयकालका समूह संख्यातगुणा पाया जाता है। संयतोंमें सयोगिकेवली जिनोंसे अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २५० ॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है। यहांपर राशिके ओघके समान होनेका कारण चिन्तवन कर कहना चाहिए। इसका कारण यह है कि दोनों स्थानोंपर संयम-सामान्य ही विवक्षित है (देखो सूत्र नं. ८)। संयतोंमें अप्रमत्तसंयतोंसे प्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २५१ ॥ गुणकार क्या है ? दो रूप गुणकार है। संयतोंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥ २५२ ॥ क्योंकि, उनका संचयकाल अन्तर्मुहूर्त है। संयतोंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २५३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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