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________________ १, ८, २४२.] अप्पाबहुगाणुगमे मणपज्जव-केवलणाणि-अप्पाबहुगपरूवणं [३२१ उवसमसेडीदो ओदिण्णाणं उबसमसेटिं चढमाणाणं वा उवसमसम्मत्तेण थोवाणं जीवाणमुवलंभा । खइयसम्माइट्ठी संखेज्जगुणा ॥ २३७ ॥ खइयसम्मत्तेण मणपज्जवणाणिमुणिवराणं बहूणमुवलंभा । वेदगसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ २३८ ॥ सुगममेदं । एवं तिसु अद्धासु ॥ २३९ ॥ सव्वत्थोवा उवसमा ॥ २४० ॥ खवा संखेज्जगुणा ॥ २४१ ॥ एदाणि तिणि सुत्ताणि सुगमाणि, बहुसो परविदत्तादो । केवलणाणीसु सजोगिकेवली अजोगिकेवली पवेसणेण दो वि तुल्ला तत्तिया चेव ॥ २४२ ॥ क्योंकि, उपशमश्रेणीसे उतरनेवाले, अथवा उपशमश्रेणीपर चढ़नेवाले मनःपर्ययशानी थोड़े जीव उपशमसम्यक्त्वके साथ पाये जाते हैं। __मनःपर्ययज्ञानियों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २३७ ॥ क्योंकि, उक्त गुणस्थानोंमें क्षायिकसम्यक्त्वके साथ बहुतसे मनापर्ययशानी मुनिवर पाये जाते हैं। ... मनःपर्ययज्ञानियोंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २३८ ॥ यह सूत्र सुगम है। इसी प्रकार मनःपर्ययज्ञानियोंमें अपूर्वकरण आदि तीन उपशामक गुणस्थानों में सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व है ॥ २३९ ॥ मनःपर्ययज्ञानियों में उपशामक जीव सबसे कम हैं ॥ २४० ॥ उपशामक जीवोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २४१ ।। ये तीनों सूत्र सुगम हैं, क्योंकि, वे वहुत वार प्ररूपण किये जा चुके हैं। केवलज्ञानियोंमें सयोगिकेवली और अयोगिकेवली जिन प्रवेशकी अपेक्षा दोनों ही तुल्य और तावन्मात्र ही हैं ॥ २४२ ॥ १ अपत्योः 'ओहिणाणं आपतौ ओधिणाणं ' इति पाठः ।. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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