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________________ ३२० ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ८, २३०. ___ मणपज्जवणाणीसुतिसु अद्धासु उवसमा पवेसणेण तुल्ला थोवा ॥ २३० ॥ उवसंतकसायवीदरागछदुमत्था तत्तिया चेव ॥२३१ ॥ खवा संखेज्जगुणा ॥२३२॥ खीणकसायवीदरागछदुमत्था तत्तिया चेव ॥ २२३ ॥ एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि । अप्पमत्तसंजदा अक्खवा अणुवसमा संखेज्जगुणा ॥ २३४ ॥ को गुणगारो ? संखेज्जरूवाणि । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा ॥ २३५ ॥ को गुणगारो ? दोण्णि रूवाणि । पमत्त-अप्पमत्तसंजदट्ठाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी ॥२३६॥ मनःपर्ययज्ञानियोंमें अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानोंमें उपशामक जीव प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और अल्प हैं ॥ २३० ॥ उपशान्तकषायवीतरागछमस्थ जीव पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ २३१ ॥ उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ।। २३२ ॥ क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ २३३ ॥ ये सूत्र सुगम है। मनःपर्ययज्ञानियोंमें क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थोंसे अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तंसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ।। २३४ ॥ गुणकार क्या है ? संख्यात रूप गुणकार है। मनःपर्ययज्ञानियोंमें अप्रमत्तसंयतोंसे प्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ॥२३५॥ गुणकार क्या है ? दो रूप गुणकार है। मनःपर्ययज्ञानियोंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥ २३६ ॥ १ मनःपर्ययज्ञानिषु सर्वतः स्तोकाश्चत्वार उपशामकाः। स.सि. १, ८. तेषां संख्या १० गो. जी. ६३.. २ चत्वारः क्षपकाः संख्येयगुणाः । स. सि. १, ८, तेषां संख्या २० । गो. जी. ६३०. ३ अप्रमत्तसंयताः संख्येयगुणाः । स. सि. १,८. ४ प्रमत्तसंयताः संख्येयगुणाः । स. सि. १,८. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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