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१, ८, २२९. ] अप्पा बहुगागमे मदि-सुद-ओधिणाणि - अप्पाबहुगपरूवणं
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कुदो ? पलिदोवस्त असंखेज्जदिभागपरिमाणत्तादो । को गुणगारो ? पलिदोत्रमस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । असंजदसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणां ॥ २२५ ॥
कुदो ? पहाणीकयदेव असंजदसम्मादिट्ठिरासित्तादो । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेजदिभागो ।
असंजदसम्मादिट्टि -संजदासंजद- पमत्त अप्पमत्तसंजदट्ठाणे सम्मत्तपाबहुगमोघं ॥ २२६ ॥
जधा ओघहि देसि सम्मत्तप्पाबहुअं परूविदं, तधा परूवेदव्वमिदि वुत्तं होदि । एवं तिसु अद्धासु ॥ २२७ ॥ सव्वत्थोवा उवसमा ॥ २२८ ॥ खवा संखेज्जगुणा ॥ २२९ ॥
दाणि तिणि वित्ताणि सुगमाणि ।
क्योंकि, उनका परिमाण पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है ।
मति, श्रुत और अवधिज्ञानियों में संयतासंयतोंसे असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ।। २२५ ॥
क्योंकि, यहांपर असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंकी राशि प्रधानतासे स्वीकार की गई है । गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है ।
मति, श्रुत और अवधिज्ञानियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व ओघके समान है ॥ २२६॥ जिस प्रकार ओघमें इन गुणस्थानोंका सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व कहा है, उसी प्रकार यहांपर भी प्ररूपण करना चाहिए, यह अर्थ कहा गया है ।
इसी प्रकार मति, श्रुत और अवधिज्ञानी जीवोंमें अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानोंमें सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व है ।। २२७ ॥
मति, श्रुत और अवधिज्ञानियोंमें उपशामक जीव सबसे कम हैं || २२८ ॥ उपशामकों से क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ।। २२९ ॥
ये तीनों ही सूत्र सुगम हैं ।
१ असंयतसम्यग्दृष्टयः (अ ) संख्येयगुणाः । स. सि. १,८.
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