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________________ ३९८) . छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ८, २१.. एवं पि सुगमं । खवा संखेज्जगुणा॥ २२०॥ को गुणगारो ? दोण्णि रूवाणि । खीणकसायवीदरागछदुमत्था तेत्तिया चेव ॥ २२१ ॥ सुगममेदं । अप्पमत्तसंजदा अक्खवा अणुवसमा संखेज्जगुणा ॥ २२२ ॥ कुदो ? अणूणाहियओघरासित्तादो । पमत्तसंजदा संखेनगुणा ॥ २२३॥ को गुणगारो ? दोण्णि रूवाणि । संजदासंजदा असंखेज्जगुणा ॥ २२४ ॥ यह सूत्र भी सुगम है। मति, श्रुत और अवधिज्ञानियोंमें उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ।। २२० ॥ गुणकार क्या है ? दो रूप गुणकार है। मति, श्रुत और अवधिज्ञानियोंमें क्षपकोंसे क्षीणकषायवीतरागछमस्थ पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ २२१ ॥ यह सूत्र सुगम है। मति, श्रुत और अवधिज्ञानियोंमें क्षीणकषायवीतरागछअस्थोंसे अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २२२ ॥ क्योंकि, उनका प्रमाण ओघराशिसे न कम है, न अधिक है। मति, श्रुत और अवधिज्ञानियोंमें अप्रमत्तसंयतोंसे प्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २२३॥ गुणकार क्या है ? दो रूप गुणकार है। मति, श्रुत और अवधिज्ञानियोंमें प्रमत्तसंयतोंसे संयतासंयत जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ २२४ ॥ १ चत्वारः क्षपकाः संख्येयगुणाः । स. सि. १, ८. २ अप्रमत्तसंयताः संख्येयगुणाः । स. सि. १, ८. ३ प्रमत्तसंयताः संख्येयगुणाः । स. सि. १,८. ४ संयतासंबताः (अ.) संख्येयगुणाः । स. सि. १, . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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