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१, ८, २१९.] अप्पाबहुगाणुगमे मदि-सुद-ओधिणाणि-अप्पाबहुगपरूवणं [३१७
कुदो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागपरिमाणत्तादो । मिच्छादिट्ठी अणंतगुणा, मिच्छादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥२१७॥
एत्थ एवं संबंधो कीरदे- मदि-सुदअण्णाणिसासणेहिंतो मिच्छादिट्ठी अणंतगुणा । को गुणगारो ? सव्वजीवरासिस्स असंखेज्जदिभागो। विभंगणाणिसासणेहितो तेसिं चेव मिच्छादिट्ठी असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? पदरस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेजाओ सेडीओ, सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताओ। को पडिभागो ? घणंगुलस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि पदरंगुलाणि त्ति । अण्णहा विप्पडिसेहत्तादो ।
आभिणिबोहिय-सुद-आधिणाणीसु तिसु अद्धासु उवसमा पवेसणेण तुल्ला थोवा ॥ २१८ ॥
सुगममेदं । उवसंतकसायवीदरागछदुमत्था तत्तिया चेव ॥ २१९ ।। क्योंकि, उनका परिमाण पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र है।
उक्त तीनों अज्ञानी जीवोंमें मिथ्यादृष्टि अनन्तगुणित हैं, मिथ्यादृष्टि असंख्यातगुणित हैं ॥ २१७॥
यहांपर इस प्रकार सूत्रार्थ-सम्बन्ध करना चाहिए- मत्यज्ञानी और श्रुताशानी सासादन सम्यग्दृष्टियोंसे मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणित हैं। गुणकार क्या है ? सर्व जीवराशिका असंख्यातवां भाग गुणकार है। विभंगज्ञानी सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे उनके ही मिथ्यादृष्टि अर्थात् विभंगशानी मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं। गुणकार क्या है ? जगप्रतरका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो जगश्रेणीके असंख्यातवें भागमात्र असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? घनांगुलका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है, जो असंख्यात प्रतरांगुलप्रमाण है। यदि इस प्रकार सूत्रका अर्थ न किया जायगा, तो परस्पर विरोध प्राप्त होगा।
आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानोंमें उपशामक प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और अल्प हैं ॥ २१८ ।।
यह सूत्र सुगम है।
मति, श्रुत और अवधिज्ञानियोंमें उपशान्तकषायवीतरागछमस्थ पूर्वोक्त प्रमाण. ही हैं ॥ २१९॥
१ मिथ्यादृष्टयोऽसंख्येयगुणाः।स. सि. १,८. २ प्रतिषु 'एदं' इति पाठः। ३ मतिश्रुतावधिलानिषु सर्वतः स्तोकाश्चत्वार उपशामकाः।स. सि. १,८.
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