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३१६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ८, २१२. अकसाईसु सव्वत्थोवा उवसंतकसायवीदरागछदुमत्था ॥२१२॥ चउवण्णपरिमाणत्तादों। खीणकसायवीदरागछदुमत्था संखेज्जगुणा ॥ २१३ ॥ अट्टत्तरसदपरिमाणत्तादो।
सजोगिकेवली अजोगिकेवली पवेसणेण दो वि तुल्ला तत्तिया चेव ॥ २१४ ॥
सुगममेदं । सजोगिकेवली अद्धं पडुच्च संखेज्जगुणा ॥ २१५ ॥ कुदो ? अणूणाधियओघरासित्तादो ।
एवं कसायमग्गणा समत्ता । णाणाणुवादेण मदिअण्णाणि-सुदअण्णाणि-विभंगण्णाणीसु सव्वत्थोवा सासणसम्मादिट्ठी ॥ २१६ ॥
अकषायी जीवोंमें उपशान्तकषायवीतरागछमस्थ सबसे कम हैं ॥ २१२ ॥ क्योंकि, उनका प्रमाण चौपन है।
अकषायी जीवोंमें उपशान्तकषायवीतरागछमस्थोंसे क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ संख्यातगुणित हैं ॥ २१३ ॥
क्योंकि, उनका परिमाण एक सौ आठ है। - अकषायी जीवोंमें सयोगिकेवली और अयोगिकेवली, ये दोनों ही प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ २१४ ॥
यह सूत्र सुगम है। अकषायी जीवोंमें सयोगिकेवली संचयकालकी अपेक्षा संख्यातगुणित हैं ॥२१५॥ क्योंकि, उनका प्रमाण ओघराशिसे न कम है, न अधिक है।
इस प्रकार कषायमार्गणा समाप्त हुई। ज्ञानमार्गणाके अनुवादसे मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी और विभंगज्ञानी जीवोंमें सासादनसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं ॥ २१६॥
१ गो. जी. ६२९. २ ज्ञानानुवादेन मत्यज्ञानि-श्रुतानानिषु सर्वतः स्तोकाः सासादनसम्यग्दृष्टयः। स. सि. १, ८.
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