________________
३२२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ८, २४३. तुल्ला तत्तिया सद्दा हेउ-हेउमंतभावेण जोजेयव्या । तं कधं ? जेण तुल्ला, तेण तत्तिया ति । केत्तिया ते ? अट्टत्तरसयमेत्ता ।
सजोगिकेवली अद्धं पडुच्च संखेज्जगुणा ॥ २४३॥
पुनकोडिकालम्हि संचयं गदा सजोगिकेवलिणो एगसमयपवेसगेहिंतो संखेज्जगुणा, संखेज्जगुणेण कालेण मिलिदत्तादो ।
एवं णाणमग्गणा समत्ता । संजमाणुवादेण संजदेसु तिसु अद्धासु उवसमा पवेसणेण तुल्ला थोवा ॥ २४४ ॥
कुदो ? चउवण्णपमाणत्तादो। उवसंतकसायवीदरागछदुमत्था तत्तिया चेव ॥ २४५॥ सुगममेदं। खवा संखेज्जगुणा ॥ २४६ ॥ तुल्य और तावन्मात्र, ये दोनों शब्द हेतु-हेतुमद्भावसे सम्बन्धित करना चाहिए। शंका वह कैसे?
समाधान-चूंकि, सयोगिकेवली और अयोगिकेवली परस्पर तुल्य हैं, इसलिए वे तावन्मात्र अर्थात् पूर्वोक्त प्रमाण हैं।
शंका-वे कितने हैं ? समाधान-वे एक सौ आठ संख्याप्रमाण हैं । केवलज्ञानियोंमें सयोगिकेवली संचयकालकी अपेक्षा संख्यातगुणित हैं ॥२४३॥
पूर्वकोटीप्रमाण कालमें संचयको प्राप्त हुए सयोगिकेवली एक समयमें प्रवेश करनेवालोंकी अपेक्षा संख्यातगुणित हैं, क्योंकि, वे संख्यातगुणित कालसे संचित
इस प्रकार ज्ञानमार्गणा समाप्त हुई । संयममार्गणाके अनुवादसे संयतोंमें अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानों में उपशामक जीव प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और अल्प हैं ।। २४४ ।।
क्योंकि, उनका प्रमाण चौपन है। संयतोंमें उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ जीव पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ २४५ ॥ यह सूत्र सुगम है। संयतोंमें उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ॥२४६॥ १ फेवलबाजिपु अयोगकेवलिभ्यः सयोगकेवलिनः संख्येयगुणाः । स.सि. १, ८.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org