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३१२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ८, १९७. कसायाणुवादेण कोधकसाइ-माणकसाइ-मायकसाइ-लोभकसाईसु दोसु अद्धासु उवसमा पवेसणेण तुल्ला थोवा ॥ १९७ ॥
सुगममेदं । खवा संखेज्जगुणा ॥ १९८ ॥ को गुणगारो ? दो रूवाणि ।
णवरि विसेसा, लोभकसाईसु सुहुमसांपराइय-उवसमा विसेसाहिया ॥ १९९ ॥
दोउवसामयपवेसएहितो संखेज्जगुणे दोगुणट्ठाणपवेसयक्खवए पेक्खिदण कधं सुहुमसांपराइयउवसामया विसेसाहिया ? ण एस दोसो, लोभकसाएण खवएसु पविसंतजीवे पेक्खिदूण तेसिं सुहुमसांपराइयउवसामएसु पविसंताणं चउवण्णपरिमाणाणं
कषायमार्गणाके अनुवादसे क्रोधकषायी, मानकषायी, मायाकषायी और लोभकषायियोंमें अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण, इन दोनों गुणस्थानोंमें उपशामक जीव प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और अल्प हैं ॥ १९७ ॥
यह सूत्र सुगम है। चारों कषायवाले जीवोंमें उपशामकोंसे क्षपक संख्यातगुणित हैं ॥ १९८॥ गुणकार क्या है ? दो रूप गुणकार है ।
केवल विशेषता यह है कि लोभकषायी जीवोंमें क्षपकोंसे सूक्ष्मसाम्परायिक उपशामक विशेष अधिक हैं ॥ १९९ ॥
शंका-अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण, इन दो उपशामक गुणस्थानोंमें प्रवेश करनेवाले जीवोंसे संख्यातगुणित प्रमाणवाले इन्हीं दो गुणस्थानों में प्रवेश करनेवाले क्षपकोंको देखकर अर्थात् उनकी अपेक्षासे सूक्ष्मसाम्परायिक उपशामक विशेष अधिक कैसे हो सकते हैं ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, लोभकषायके उदयसे क्षपकोंमें प्रवेश करनेवाले जीवोंको देखते हुए लोभकषायके उदयसे सूक्ष्मसाम्परायिक उपशामकोंमें प्रवेश करनेवाले और चौपन संख्यारूप परिमाणवाले उन लोभकषायी जीवोंके विशेष
१ कषायानुवादेन क्रोधमानमायाकषायाणां पुंवेदवत् ।xxx लोभकषायाणां द्वयोरुपशमकयोस्तुल्या संख्या । क्षपकाः संख्येयगुणाः । सूक्ष्मसाम्परायशुद्धयुपशमकसंयताः विशेषाधिकाः । सूक्ष्मसाम्परायक्षपकाः संख्येयगुणाः । शेषाणां सामान्यवत् । स. सि. १, ८.
२ प्रतिषु — संखेज्जगुणो' इति पाठः ।
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