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________________ १, ८, १९६.] अप्पाबहुगाणुगमे अबगदवेदि-अप्पाबहुगपरूवणं [३११ अवगदवेदएसु दोसु अद्धासु उवसमा पवेसणेण तुल्ला थोवा ॥ १९१॥ उवसंतकसायवीदरागछदुमत्था तत्तिया चेव ॥ १९२ ॥ दो वि सुत्ताणि सुगमाणि । खवा संखेज्जगुणा ॥ १९३॥ कुदो ? अदुत्तरसदपमाणत्तादो। खीणकसायवीदरागछदुमत्था तत्तिया चेव ॥ १९४ ॥ सजोगिकेवली अजोगिकेवली पवेसणेण दो वि तुल्ला तत्तिया चेव ॥ १९५॥ दो वि सुत्ताणि सुगमाणि । सजोगिकेवली अद्धं पडुच्च संखेज्जगुणा ॥ १९६ ॥ एदं पि सुगमं । एवं वेदमग्गणा समत्ता । अपगतवेदियोंमें अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण, इन दोनों गुणस्थानोंमें उपशामक जीव प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और अल्प हैं ॥ १९१ ॥ उपशान्तकषायवीतरागछमस्थ जीव पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ १९२ ॥ ये दोनों ही सूत्र सुगम हैं। अपगतवेदियोंमें उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ॥ १९३ ॥ क्योंकि, इनका प्रमाण एक सौ आठ है । अपगतवेदियोंमें क्षीणकषायवीतरागछमस्थ पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ १९४ ॥ सयोगिकेवली और अयोगिकेवली ये दोनों ही प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ १९५ ॥ ये दोनों ही सूत्र सुगम हैं। सयोगिकेवली संचयकालकी अपेक्षा संख्यातगुणित हैं ॥ १९६ ॥ यह सूत्र भी सुगम है। इस प्रकार वेदमार्गणा समाप्त हुई। १xx अवेदानां च सामान्यवत् । स. सि. १, ८. २ गो. जी. ६२९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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