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१, ८, २०२. ]
अप्पाबहुग|णुगमे चदुकसाइ- अप्पाबहुगपरूवणं
विसेसाहियत्ताविरोहा । कुदो ? लोभकसाईसुति विसेसणादो । खवा संखेज्जगुणा ॥ २०० ॥ उवसामगेहिंतो खवगाणं दुगुणत्तुवलंभा ।
अप्पमत्तसंजदा अक्खवा अणुवसमा संखेज्जगुणा ॥ २०१ ॥
को गुणगारो ? संखेज्जा समया ।
पमत्त संजदा संखेज्जगुणा ॥ २०२ ॥
को गुणगारो ? दो रुवाणि । चदुकसायअप्पमत्तसंजदाणमेत्थ संदिट्ठी २ । ३। ४ । ७ । पमत्त संजदाणं संदिट्ठी ४ । ६ । ८ । १४ ।
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अधिक होने में कोई विरोध नहीं है । विरोध न होनेका कारण यह है कि सूत्रमें 'लोभकषायी जीवों में ' ऐसा विशेषणपद दिया गया है ।
लोभकषायी जीवोंमें सूक्ष्मसाम्परायिक उपशामकोंसे सूक्ष्मसाम्परायिक क्षपक संख्यातगुणित हैं ।। २००॥
क्योंकि, उपशामकोंसे क्षपक जीवोंका प्रमाण दुगुणा पाया जाता है । चारों कषायवाले जीवोंमें क्षपकोंसे अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत संख्यातगुणित हैं ।। २०१ ॥
गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है ।
चारों कषायवाले जीवोंमें अप्रमत्तसंयतों से प्रमत्त संयत संख्यातगुणित हैं ॥ २०२॥
गुणकार क्या है ? दो रूप गुणकार है । यहां चारों कषायवाले अप्रमत्त संयतोंका प्रमाण या अल्पबहुत्व बतलानेवाली अंकसंदृष्टि इस प्रकार है - २।३।४।७। तथा चारों कषायवाले प्रमत्तसंयतोंकी अंकसंदृष्टि ४ । ६ । ८ और १४ है ।
विशेषार्थ - यहां पर चतुःकषायी अप्रमत्त और प्रमत्त संयतोंके प्रमाणका ज्ञान करानेके लिये जो अंकसंदृष्टि बतलाई गई है, उसका अभिप्राय यह है कि मनुष्य तिर्यचों में मानकषायका काल सबसे कम है, उससे क्रोध, माया और लोभकषायका काल उत्तरोउत्तर विशेष अधिक होता है । (देखो भाग ३, पृ. ४२५ ) । तदनुसार यहां पर अप्रमत्तसंयत और प्रमत्तसंयतोंका अंकसंदृष्टि द्वारा प्रमाण बतलाया गया है कि मानकषायवाले अप्रमत्तसंयत सबसे कम है, जिनका प्रमाण अंकसदृष्टिमें (२) दो बतलाया गया है । इनसे क्रोधकषायवाले अप्रमत्तसंयत विशेष अधिक होते हैं, जिनका प्रमाण अंकसंदृष्टि (३) तीन बतलाया गया है। इनसे मायाकषायवाले अप्रमत्त संयत विशेष अधिक होते हैं, जिनका प्रमाण अंकसंदृष्टिमें (४) चार बतलाया गया है । इनसे लोभकषायवाले अप्रमत्तसंयत विशेष अधिक होते हैं, जिनका प्रमाण अंकसंदृष्टिमें (७) सात बतलाया गया है । चूंकि अप्रमत्तसंयतोंसे प्रमत्तसंयतोंका प्रमाण दुगुणा माना गया है, इसलिए यहां अंकसंदृष्टिमें भी उनका प्रमाण क्रमशः दूना ४, ६, ८ और १४ बतलाया गया है । यह अंकसंख्या काल्पनिक है, और उसका अभिप्राय स्थूल रूपसे चारों कषायका
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