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________________ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं संजदासंजदा असंखेज्जगुणा ।। १७९ ।। को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवगमूलाणि । ३०८] सासणसम्मादिट्टी असंखेज्जगुणा ॥ १८० ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । सेसं सुगमं । सम्मामिच्छादिट्टी संखेज्जगुणा ॥ १८१ ॥ को गुणगारो ? संखेज्जसमया । कारणं चिंतिय वत्तव्वं । असंजदसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १८२ ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । मिच्छादिड्डी अनंतगुणा ॥ १८३ ॥ को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो, अनंताणि सव्वजीवरासि पढममूलाणि । नपुंसकवेदियों में प्रमत्तसंयतों से संयतासंयत जीव असंख्यातगुणित हैं ।। १७९ ॥ गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है । नपुंसकवेदियों में संयतासंयतों से सासादनसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ।। १८० ।। [ १, ८, १७९. सुगम है। Jain Education International गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । शेष सूत्रार्थ नपुंसकवेदियों में सासादनसम्यग्दृष्टियों से सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ १८१ ॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है । इसका कारण विचारकर कहना चाहिए (देखो भाग ३ पृ. ४१८ इत्यादि ) । नपुंसकवेदियों में सम्यग्मिथ्यादृष्टियों से असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ।। १८२ ॥ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । नपुंसकवेदियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टियों से मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणित हैं ॥ १८३॥ गुणकार क्या है ? अभव्यसिद्धोंसे अनन्तगुणा गुणकार है, जो सर्व जीवराशिके अनन्त प्रथम वर्गमूलप्रमाण है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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