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१, ८, १७८. 1 अप्पाबहुगाणुगमे णqसयवेदि-अप्पाबहुगपरूवणं
[३०७ खवा संखेज्जगुणा ॥ १७४॥ दो वि सुत्ताणि सुगमाणि ।
णउंसयवेदएसु दोसु अद्धासु उवसमा पवेसणेण तुल्ला थोवा ॥ १७५॥
कुदो ? पंचपरिमाणत्तादों। खवा संखेज्जगुणा ॥ १७६ ॥ कुदो ? दसपरिमाणत्तादो। अप्पमत्तसंजदा अक्खवा अणुवसमा संखेज्जगुणा ॥ १७७ ॥ कुदो ? संचयरासिपडिग्गहादो। पमत्तसंजदा संखेनगुणा ॥ १७८ ॥ को गुणगारो ? दोण्णि रूवाणि ।
उपशामकोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ॥ १७४ ॥ ये दोनों ही सूत्र सुगम है।
नपुंसकवेदियोंमें अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण, इन दोनों गुणस्थानोंमें उपशामक जीव प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और अल्प हैं ॥ १७५ ॥
क्योंकि, उनका परिमाण पांच है।
नपुंसकवेदियोंमें अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण, इन दोनों गुणस्थानोंमें उपशामकोंसे क्षपक जीव प्रवेशकी अपेक्षा संख्यातगुणित हैं ॥ १७६ ॥
क्योंकि, उनका परिमाण दस है।
नपुंसकवेदियोंमें क्षपकोंसे अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ॥ १७७ ॥
क्योंकि, उनकी संचयराशिको ग्रहण किया गया है। नपुंसकवेदियोंमें अप्रमत्तसंयतोंसे प्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ॥१७८॥ गुणकार क्या है ? दो रूप गुणकार है।
१ नपुंसकवेदानां xx सामान्यवत् । स. सि. १, ८. २ गो.जी. ६३०. दस चेव नपुंसा तह । प्रवच. द्वा. ५३.
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