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________________ ३०६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ८, १६९. असंजदसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १६९ ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेजदिभागो। मिच्छांदिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १७० ॥ को गुणगारो ? पदरस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाओ सेडीओ सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताओ। असंजदसम्मादिहि-संजदासंजद-पमत्त-अप्पमत्तसंजदट्ठाणे सम्मत्तप्पाबहुअमोघं ॥ १७१ ॥ एदेसिं जधा ओघम्हि सम्मत्तप्पाबहुअं उत्तं तधा वत्तव्वं । एवं दोसु अद्धासु ॥ १७२ ॥ सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी, खइयसम्मादिट्ठी संखेजगुणा; इच्चेदेहि साधम्मादो। सव्वत्थोवा उवसमा ॥ १७३ ॥ पुरुषवेदियोंमें सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंसे असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ १६९ ॥ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । पुरुषवेदियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ १७ ॥ ___ गुणकार क्या है ? जगप्रतरका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो जगश्रेणीके असंख्यातवें भागमात्र असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण है। पुरुषवेदियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व ओघके समान है ॥ १७१ ॥ इन गुणस्थानोंका जिस प्रकार ओघमें सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व कहा है, उसी प्रकार यहांपर कहना चाहिए। इसी प्रकार पुरुषवेदियोंमें अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण, इन दोनों गुणस्थानों में सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व है ॥ १७२॥ क्योंकि, उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम है और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव उनसे संख्यातगुणित हैं, इस प्रकार ओघके साथ समानता पाई जाती है । पुरुषवेदियोंमें उपशामक जीव सबसे कम हैं ॥ १७३ ।। १ प्रतिषु ' एवं ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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