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________________ १, ८, १६८.] अप्पाबहुगाणुगमे पुरिसवेदि-अप्पाबहुगपरूवणं [ ३०५ अप्पमत्तसंजदा अक्खवा अणुवसमा संखेज्जगुणा ॥ १६४ ॥ को गुणगारो ? संखेज्जसमया । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा ॥ १६५॥ को गुणगारो ? दोण्णि रूवाणि । संजदासजदा असंखेज्जगुणा ॥ १६६ ॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । सासणसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १६७ ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । सेसं सुगम । सम्मामिच्छादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ १६८ ॥ को गुणगारो ? संखेज्जसमया । सेसं सुगमं । पुरुषवेदियोंमें दोनों गुणस्थानों में क्षपकोंसे अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत संख्यातगुणित हैं ॥ १६४ ॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है । पुरुषवेदियोंमें अप्रमत्तसंयतोंसे प्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ।। १६५॥ गुणकार क्या है ? दो रूप गुणकार है। पुरुषवेदियोंमें प्रमत्तसंयतोंसे संयतासंयत जीव असंख्यातगुणित हैं ॥१६६ ॥ गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। पुरुषवेदियोंमें संयतासंयतोंसे सासादनसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ १६७ ॥ __गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। शेष सूत्रार्थ सुगम है। पुरुषवेदियोंमें सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥१६८ ॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है । शेष सूत्रार्थ सुगम है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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