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३०४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ८, १६.. सव्वत्थोवा खइयसम्मादिट्ठी, उवसमसम्मादिट्ठी संखेजगुणा, इच्चेदेण साधम्मादो । सव्वत्थोवा उवसमा ॥ १६०॥
एदं सुत्तं पुणरुत्तं किण्ण होदि ? ण, एत्थ पवेसएहि अहियाराभावा । संचएण एत्थ अहियारो, ण सो पुव्वं परूविदो । तदो ण पुणरुत्तत्तमिदि ।
खवा संखेज्जगुणा ॥ १६१ ॥ सुगममेदं ।
पुरिसवेदएसु दोसु अद्धासु उवसमा पवेसणेण तुल्ला थोवा ॥१६२ ॥
चउवण्णपमाणसादों। खवा संखेज्जगुणा ॥ १६३॥ अदुत्तरसदमेत्तत्तादो।
क्योंकि, इन दोनों गुणस्थानोंमें स्त्रीवेदी क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम है, और उपशमसम्यग्दृष्टि जीव उनसे संख्यातगुणित होते हैं, इस प्रकार ओघके साथ समानता पाई जाती है।
स्त्रीवेदियोंमें उपशामक जीव सबसे कम हैं ॥ १६० ॥ शंका-यह सूत्र पुनरुक्त क्यों नहीं है ?
समाधान नहीं, क्योंकि, यहां पर प्रवेशकी अपेक्षा इस सूत्रका अधिकार नहीं है, किन्तु संचयकी अपेक्षा यहांपर अधिकार है और वह संचय पहले प्ररूपण नहीं किया गया है । इसलिये यहांपर कहे गये सूत्रके पुनरुक्तता नहीं है।
स्त्रीवेदियोंमें उपशामकोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ॥ १६१ ॥ यह सूत्र सुगम है।
पुरुषवोदियोंमें अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण, इन दोनों गुणस्थानोंमें उपशामक जीव प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और अल्प हैं ॥ १६२ ।।
क्योंकि, उनका प्रमाण चौपन है।
पुरुषवेदियोंमें उक्त दोनों गुणस्थानोंमें उपशामकोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ॥ १६३ ॥
क्योंकि, उनका प्रमाण एक सौ आठ है । २ गो. जी. ६२९. २ गो. जी. ६२९. पुरिसाण अट्ठसयं एगसमयओ सिझे । प्रवच, द्वा. ५३.
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