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________________ १, ८, १५९.] अप्पाबहुगाणुगमे इत्थिवेदि-अप्पाबहुगपरूवणं [३०३ संखेज्जरूवमेतत्तादो। उवसमसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १५४ ॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । को पडिभागो ? असंखेज्जावलियपडिभागो। वेदगसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १५५ ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेजदिभागो । पमत्त-अप्पमत्तसंजदट्ठाणे सव्वत्थोवा खइयसम्मादिट्ठी॥१५६॥ उवसमसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ १५७ ॥ वेदगसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ १५८ ॥ एदाणि तिण्णि वि सुत्ताणि सुगमाणि । एवं दोसु अद्धासु ॥ १५९ ॥ क्योंकि, स्त्रीवेदियों में संख्यात रूपमात्र ही क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव पाये जाते हैं। स्त्रीवेदियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे उपशमसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ १५४ ॥ गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? असंख्यात आवलियां प्रतिभाग है। स्त्रीवेदियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ १५५ ॥ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । स्त्रीवेदियोंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥१५६॥ क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे उपशमसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ १५७ ॥ उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ १५८ ॥ ये तीनों ही सूत्र सुगम हैं। इसी प्रकार अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण, इन दोनों गुणस्थानों में स्त्रीवेदियोंका अल्पबहुत्व है ॥ १५९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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