________________
३०२) छक्खंडागमै जीवट्ठाणं
[१,८,१५०. सुलहत्तादो।
सम्मामिच्छाइट्टी संखेज्जगुणा ॥ १५० ॥
को गुणगारो ? संखेज्जसमया । किं कारण ? सासणायादो संखेज्जगुणायसंभवादो।
असंजदसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १५१ ॥
को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो। किं कारणं? सम्मामिच्छादिट्टिआयं पेक्खिदूण असंखेज्जगुणायत्तादो।
मिच्छादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १५२ ॥
को गुणगारो ? पदरस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाओ सेडीओ सेडीए असंखेजदिभागमेत्ताओ । को पडिभागो ? घगंगुलस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि पदरंगुलाणि ।
असंजदसम्मादिट्टि-संजदासंजदट्ठाणे सव्वत्थोवा खइयसम्मादिट्ठी ॥१५३॥
स्त्रीवेदियोंमें सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ १५०॥
गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है। इसका कारण यह है कि सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानकी आयसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंकी संख्यातगुणित आय सम्भव व है, अर्थात् दूसरे गुणस्थानमें जितने जीव आते है, उनसे संख्यातगुणित जीव तीसरे गुणस्थानमें आते हैं ।
स्त्रीवेदियोंमें सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंसे असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ १५१ ॥
गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। इसका कारण यह है कि सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंकी आयको देखते हुए असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंकी असंख्यातगुणी आय होती है।
स्त्रीवेदियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥१५२॥
गुणकार क्या है ? जगप्रतरका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो जगश्रेणीके असंख्यातवें भागमात्र असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? घनांगुलका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है जो असंख्यात प्रतरांगुलप्रमाण है।
स्त्रीवेदियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥ १५३ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org