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३.०]
छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ८, १४३. तत्थासंखेज्जाणं सम्मादिट्ठीणमभावा । ण तिरिक्खा असंखेज्जा मारणंतियं करेंति, तत्थ आयाणुसारिवयत्तादो। तेण विग्गहगदीए खइयसम्मादिविणो संखेज्जा चेव होति । होता वि उवसमसम्मादिट्ठीहिंतो संखेज्जगुणा, उवसमसम्मादिट्ठिकारणादो खइयसम्मादिट्ठिकारणस्स संखेजगुणत्तादो ।
वेदगसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १४३॥
को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमलाणि । को पडिभागो ? खइयसम्मादिद्विरासिगुणिदअसंखेज्जावलियाओ।
एवं जोगमग्गणा समत्ता । वेदाणुवादेण इत्थिवेदएसु दोसु वि अद्धासु उवसमा पवेसणेण तुल्ला थोवा ॥ १४४ ॥
क्योंकि, उनमें असंख्यात क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंका अभाव है। न असंख्यात क्षायिकसम्यग्दृष्टि तिर्यंच ही मारणान्तिकसमुद्धात करते हैं, क्योंकि, उनमें आयके अनुसार व्यय होता है। इसलिए विग्रहगतिमें क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यात ही होते हैं। तथा संख्यात होते हुए भी वे उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे संख्यातगुणित होते हैं, क्योंकि, उपशमसम्यग्दृष्टियोंके (आयके) कारणसे क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंके (आयका) कारण संख्यातगुणा है।
विशेषार्थ-कार्मणकाययोगमें पाये जानेवाले उपशमसम्यग्दृष्टि जीव तो केवल उपशमश्रेणीसे मरकर ही आते हैं, किन्तु क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव उपशमश्रेणीके अतिरिक्त असंयतसम्यग्दृष्टि आदि गुणस्थानोंसे मरकर भी कार्मणकाययोगमें पाये जाते हैं । अतः उनका संख्यातगुणित पाया जाना स्वतः सिद्ध है।
कार्मणकाययोगियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ १४३ ॥
गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? क्षायिकसम्यग्दृष्टि राशिसे गुणित असंख्यात आवलियां प्रतिभाग है।
___ इस प्रकार योगमार्गणा समाप्त हुई। वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदियोंमें अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण, इन दोनों ही गुणस्थानोंमें उपशामक जीव प्रवेशकी अपेक्षा तुल्य और अल्प हैं ॥ १४४ ॥
१ बेदानुवादेन स्त्री-पुंवेदानां पंचेन्द्रियवत् । स. सि. १,८.
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