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________________ १, ८, १४२. ] अप्पा बहुगागमे जोगि अप्पा बहुगपरूवणं असंजदसम्मादिट्टी असंखेज्जगुणा ॥ १३९ ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । एत्थ कारणं णादूण वत्तव्त्रं । मिच्छादिट्टी अनंतगुणा ॥ १४० ॥ को गुणगा ? अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो, सिद्धेहि वि अनंतगुणो, अनंता णि सव्वजीवरा सिपढमवग्गमूलाणि । [ २९९ असंजदमम्मादिट्टिट्ठाणे सवत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी ॥ १४१ ॥ कुदो ? उवसममेडिम्हि उवसमसम्मत्तेण मदसंजदाणं संखेज्जत्तादो । खइयसम्मादिडी संखेज्जगुणा ॥ १४२ ॥ पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तख इय सम्मादिट्ठीहिंतो असंखेज्जजीवा विग्गहं किष्ण करेंति त्ति उत्ते उच्चदे - ण ताव देवा खइयसम्मादिट्टिणो असंखेज्जा अक्कमेण मरंति, मणुसेसु असंखेज्जखइय सम्मादिट्ठिष्पसंगा । ण च मणुसेसु असंखेज्जा मरंति, कार्मणकाययोगियों में सासादनसम्यग्दृष्टियों से असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यात - गुण हैं ।। १३९ ॥ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । यहांपर इसका कारण जानकर कहना चाहिए। (देखो इसी भागका पृ. २५१ और तृतीय भागका पृ. ४११ ) कार्मणकाययोगियों में असंयतसम्यग्दृष्टियों से मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणित हैं ।। १४० ॥ गुणकार क्या है ? अभव्यसिद्धोंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंसे भी अनन्तगुणा गुणकार है, जो सर्व जीवराशिके अनन्त प्रथम वर्गमूलप्रमाण है । कार्मणकाययोगियों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ।। १४१ ॥ क्योंकि, उपशमश्रेणीमें उपशमसम्यक्त्वके साथ मरे हुए संयतोंका प्रमाण संख्यात ही होता है । कार्मणकाययोगियों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में उपशमसम्यग्दृष्टियों से क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ १४२ ॥ शंका- पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से असंख्यात जीव विग्रह क्यों नहीं करते हैं ? समाधान - ऐसी आशंकापर आचार्य कहते हैं कि न तो असंख्यात क्षायिकसम्यग्दृष्टि देव एक साथ मरते हैं, अन्यथा मनुष्योंमें असंख्यात क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंके होनेका प्रसंग आ जायगा । न मनुष्योंमें ही असंख्यात क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव मरते हैं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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