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२९८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ८, १३६. वेदगसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ १३६ ॥
एदं पि सुगमं । उवसमसम्मादिट्ठीणमेत्थ संभवाभावा तेसिमप्पाबहुगं ण कहिंदं । किमट्ठ उवसमसम्मत्तेण आहाररिद्धी ण उप्पज्जदि ? उवसमसम्मत्तकालम्हि अइदहरम्हि तदुप्पत्तीए संभवाभावा । ण उवसमसेडिम्हि उवसमसम्मत्तेण आहाररिद्धीओ लब्भइ, तत्थ पमादाभावा । ण च तत्तो ओइण्णाण आहाररिद्धी उवलब्भइ, जत्तियमेत्तेण कालेण आहाररिद्धी उप्पज्जइ, उसमसम्मत्तस्स तत्तियमेत्तकालमवहाणाभावा ।
कम्मइयकायजोगीसु सव्वत्थोवा सजोगिकेवली ॥ १३७ ॥ कुदो ? पदर-लोगपूरणेसु उक्कस्सेण सहिमेत्तसजोगिकेवलीणमुवलंभा। सासणसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १३८ ॥
को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेन्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि ।
आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगियोंमें प्रमत्तसंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ १३६ ॥
यह सूत्र भी सुगम है। इन दोनों योगोंमें उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंका होना सम्भव नहीं है, इसलिए उनका अल्पबहुत्व नहीं कहा है।
शंका--उपशमसम्यक्त्वके साथ आहारकऋद्धि क्यों नहीं उत्पन्न होती है ?
समाधान-क्योंकि, अत्यन्त अल्प उपशमसम्यक्त्वके कालमें आहारकऋद्धिका उत्पन्न होना सम्भव नहीं है। न उपशमसम्यक्त्वके साथ उपशमश्रेणीमें आहारकऋद्धि पाई जाती है, क्योंकि, वहांपर प्रमादका अभाव है। न उपशमश्रेणीसे उतरे हुए जीवोंके भी उपशमसम्यक्त्वके साथ आहारकऋद्धि पाई जाती है, क्योंकि, जितने कालके द्वारा आहारकऋद्धि उत्पन्न होती है, उपशमसम्यक्त्वका उतने काल तक अवस्थान नहीं रहता है।
कार्मणकाययोगियोंमें सयोगिकेवली जिन सबसे कम हैं ॥ १३७ ॥
क्योंकि, प्रतर और लोकपूरणसमुद्धातमें अधिकसे अधिक केवल साठ सयोगिकेवली जिन पाये जाते हैं। ___कार्मणकाययोगियोंमें सयोगिकेवली जिनों से सासादनसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ १३८॥
गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है।
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