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________________ अप्पा बहुगागमे जोगि- अप्पा बहुगपरूवणं [ २९७ असंजदसम्मादिट्ठाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी ॥ १३२ ॥ कुदो ? उवसमसम्मत्तेण सह उवसमसेढिम्हि मदजीवाणमथोवत्तादो | खइयसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ १३३ ॥ सामगेर्हितो संखेज्जगुणअसंजदसम्मादिट्ठि आदिगुणट्ठाणेहिंतो संचयसंभवादो । वेद सम्मादिट्टी असंखेज्जगुणा ॥ १३४ ॥ १, ८, १३५. ] तिरिक्खेहिंतो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्त वेदगसम्मादिट्टिजीवाणं देवेसु उववादसंभवादो। को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि पलिदो - वमपढमवग्गमूलाणि । पमत्तसंजदट्ठाणे आहारकाय जोगि आहारमिस्स कायजोगीसु सव्वत्थोवा खइयसम्मादिट्ठी ॥ १३५ ॥ मे | वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥ १३२ ॥ क्योंकि, उपशमसम्यक्त्वके साथ उपशमश्रेणीमें मरे हुए जीवोंका प्रमाण अत्यन्त अल्प होता है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ।। १३३ ॥ क्योंकि, उपशमश्रेणीमें मरे हुए उपशामकोंसे संख्यातगुणित असंयत सम्यग्दृष्टि आदि गुणस्थानों की अपेक्षा क्षायिकसम्यग्दृष्टियों का संचय सम्भव है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में क्षायिकसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ।। १३४ ॥ क्योंकि, तिर्यंचोंसे पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंका देवोंमें उत्पन्न होना संभव है । गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है । आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगियों में प्रमत्तसंयत गुणस्थान में क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ।। १३५ ॥ यह सूत्र सुगम है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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