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________________ २९६ ] छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, ८, १२९. जधा देवग दिम्हि अप्पा बहुअं उत्तं, तथा वेउब्वियकायजोगीसु वत्तव्यं । तं जधासव्वत्थोवा सासणसम्मादिट्ठी । सम्मामिच्छादिट्ठी संखेज्जगुणा । असंजद सम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा । मिच्छादिट्ठी असंखेज्जगुणा । असंजदसम्मादिट्ठिट्ठाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी । खइयसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा । वेदगसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा । वेव्वियामि स्कायजोगीसु सव्वत्थोवा सासणसम्मादिट्ठी ॥ १२९ ॥ कारणं पुत्रं व वत्तव्यं । असंजदसम्मादिट्टी संखेज्जगुणा ।। १३० ।। को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । एत्थ कारणं संभालिय वत्तव्यं । मिच्छादिट्टी असंखेज्जगुणा ॥ १३१ ॥ को गुणगारो ? पदरस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाओ सेडीओ सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताओ । को पडिभागो ? घणंगुलस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि पदरंगुलाणि । जिस प्रकार देवगतिमें जीवोंका अल्पबहुत्व कहा है, उसी प्रकार वैक्रियिककाययोगियों में कहना चाहिए। जैसे- वैक्रियिककाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं। उनसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं। उनसे असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं। उनसे मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं। असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें वैक्रियिककाययोगी उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं। उनसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं। उनसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें सासादनसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥ १२९ ॥ इसका कारण पूर्वके समान कहना चाहिए । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों में सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे असंयतसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ।। १३० ॥ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । यहां पर कारण संभालकर कहना चाहिए । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों में असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यात - गुण हैं ।। १३१ ॥ गुणकार क्या है ? जगप्रतरका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो असंख्यात जगणप्रमाण है । वे जगश्रेणियां भी जगश्रेणी के असंख्यातवें भागमात्र हैं । प्रतिभाग क्या है ? घनांगुलका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है, जो असंख्यात प्रतरांगुलप्रमाण है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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