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________________ अप्पा बहुगागमे जोगि अप्पाबहुगपरूवणं सासणसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १२४ ॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमचग्गमूलाणि । मिच्छादिट्टी अनंतगुणा ॥ १२५ ॥ को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो, सिद्धेहि वि अनंतगुणो, अनंताणि सव्वजीवरासिपढमवग्गमूलाणि । १, ८, १२८. ] [ २९५ असजद सम्माइट्टिट्ठाणे सव्वत्थोवा खइयसम्मादिट्ठी ॥ १२६ ॥ दंसणमोहणीयखएणुप्पण्णसद्दहणाणं जीवाणमइदुल्लभत्तादो । वेद सम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ १२७ ॥ खओवस मियसम्मत्ताणं जीवाणं बहूणमुवलंभा । को गुणगारो ? संखेज्जा समया । व्वियका जोगी देवगदिभंगो ॥ १२८ ॥ औदारिकमिश्रकाययोगियों में असंयतसम्यग्दृष्टियों से सासादनसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ।। १२४ ॥ गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है । औदारिकमिश्रकाययोगियों में सासादनसम्यग्दृष्टियों से मिध्यादृष्टि जीव अनन्तगुणित हैं ।। १२५ ।। गुणकार क्या है ? अभव्यसिद्धों से अनन्तगुणित और सिद्धोंसे भी अनन्तगुणित राशि गुणकार है, जो सर्व जीवराशिके अनन्त प्रथम वर्गमूलप्रमाण है । औदारिक मिश्रकाययोगियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥ १२६॥ क्योंकि, दर्शनमोहनीयकर्मके क्षयसे उत्पन्न हुए श्रद्धानवाले जीवोंका होना अतिदुर्लभ है। Jain Education International औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं ।। १२७ ॥ क्योंकि, क्षायोपशमिक सम्यक्त्ववाले जीव बहुत पाये जाते हैं। गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है । वैक्रियिककाययोगियों में ( संभव गुणस्थानवर्ती जीवोंका ) अल्पबहुत्व देवगतिके समान है ।। १२८ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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