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________________ २९४) छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ८, ११९ एवं तिसु अद्धासु ॥ ११९ ॥ सुगममेदं । सव्वत्थोवा उवसमा ॥ १२० ॥ एदं पि सुगमं । खवा संखेज्जगुणा ॥ १२१ ॥ अप्पिदजोगउवसामगेहितो अप्पिदजोगाणं खवा संखेज्जगुणा । एत्थ पक्खेवसंखेवेण मूलरासिमोवट्टिय अप्पिदपक्खेवेण गुणिय इच्छिदरासिपमाणमुप्पाएदव्यं । ओरालियमिस्सकायजोगीसु सव्वत्थोवा सजोगिकेवली ॥१२२॥ कवाडे चडणोयरणकिरियावावदचालीसजीवमवलंबादो थोवा जादा । असंजदसम्मादिट्ठी संखेनगुणा ॥ १२३॥ कुदो ? देव-णेरइय-मणुस्सेहितो आगंतूण तिरिक्खमणुसेसुप्पण्णाणं असंजदसम्मादिट्ठीणमोरालियमिस्सम्हि सजोगिकेवलीहिंतो संखेज्जगुणाणमुवलंभा। इसी प्रकार उक्त बारह योगवाले जीवोंमें अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानोंमें सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व है ॥ ११९ ॥ यह सूत्र सुगम है। उक्त बारह योगवाले जीवोंमें उपशामक जीव सबसे कम है ॥ १२० ॥ यह सूत्र भी सुगम है। उक्त बारह योगवाले उपशामकोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ।। १२१ ॥ विवक्षित योगवाले उपशामकोंसे विवक्षित योगवाले क्षपक जीव संख्यातगुणित होते हैं । यहांपर प्रक्षेप-संक्षेपके द्वारा मूलजीवराशिको भाजित करके विवक्षित प्रक्षेपराशिसे गुणा कर इच्छित राशिका प्रमाण उत्पन्न कर लेना चाहिए (देखो द्रव्यप्र. भाग ३ पृ. ४८-४९)। औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें सयोगिकेवली सबसे कम हैं ॥ १२२ ॥ क्योंकि, कपाटसमुद्धातके समय आरोहण और अवतरणक्रियामें संलग्न चालीस जीवोंके अवलम्बनसे औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें सयोगिकेवली सबसे कम हो जाते हैं। औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें सयोगिकेवली जिनोंसे असंयतसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ १२३ ॥ क्योंकि, देव, नारकी और मनुष्योंसे आकर तिर्यंच और मनुष्यों में उत्पन्न होने बाले असंयतसम्यग्दृष्टि जीव औदारिकमिश्रकाययोगमें सयोगिकेवली जिनोंसे संख्यातगुणित पाये जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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