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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१,८,११३.
सुगममेदं ।
संजदासजदा असंखेज्जगुणा ॥ ११३ ॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेजदिभागस्स संखेजदिभागो । सेसं सुगमं । . सासणसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ११४ ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेजदिभागो । कारणं जाणिदूण वत्तव्वं । सम्मामिच्छादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ ११५ ॥ को गुणगारो ? संखेज्जसमया । एत्थ वि कारणं णिहालिय वत्तव्यं । असंजदसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ११६ ॥
को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो। जोगद्धाणं समासं कादण तेण सामण्णरासिमोवट्टिय अप्पिदजोगद्धाए गुणिदे इच्छिद-इच्छिदरासीओ होति । अणेण पयारेण सव्वत्थ दव्वपमाणमुप्पाइय अप्पाबहुअं वत्तव्यं ।
यह सूत्र सुगम है। उक्त बारह योगवाले प्रमत्तसंयतोंसे संयतासंयत जीव असंख्यातगुणित हैं ॥११३॥
गुणकार क्या है ? पल्योपमके असंख्यातवे भागका संख्यातवां भाग गुणकार है। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
उक्त बारह योगवाले संयतासंयतोंसे सासादनसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ ११४ ॥
गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। इसका कारण जानकर कहना चाहिए (देखो इसी भागका पृ. २४९)।
उक्त बारह योगवाले सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ११५ ॥
गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है। यहां पर भी इसका कारण स्मरण कर कहना चाहिए (देखो इसी भागका पृ. २५०)।
उक्त बारह योगवाले सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंसे असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥११६॥
गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। योगसम्बन्धी कालोंका समास (योग) करके उससे सामान्यराशिको भाजित कर पुनः विवक्षित योगके कालसे गुणा करनेपर इच्छित इच्छित योगवाले जीवोंकी राशियां हो जाती हैं । इस प्रकारसे सर्वत्र द्रव्यप्रमाणको उत्पन्न करके उनका अल्पबहुत्व कहना चाहिए ।
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